किसी भी व्यक्ति या पाठ को अध्ययन का विषय बनाने का मतलब है उसकी आलोचनात्मक पड़ताल. पढ़ाने का मतलब प्रचार नहीं है. धर्म के अध्ययन को लेकर संकट पैदा होता है क्योंकि धार्मिक लोग धर्म को आलोचना नहीं आस्था का विषय मानते हैं. पर श्रद्धा,आवेश से मुक्त होना कक्षा में प्रवेश की पहली शर्त है.