सुप्रीम कोर्ट ने 42वें संशोधन, जिसके तहत संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़े गए थे- की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए कहा कि लगभग 44 वर्षों के बाद इस संवैधानिक संशोधन को चुनौती देने का कोई वैध कारण या औचित्य नहीं है.