राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट में बताया कि 2020 में 2019 की तुलना में आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. 2020 में आत्महत्या के 1,53,052 मामले यानी रोज़ाना औसतन 418 मामले दर्ज किए गए. वर्ष 2019 में इनकी संख्या 1,39,123 थी. केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाले एनसीआरबी ने बताया कि प्रति लाख जनसंख्या में आत्महत्या दर में भी बढ़ोतरी हुई है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 'क्राइम इन इंडिया 2020' रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में बलात्कार के मामलों में पूर्वोत्तर के राज्यों में असम शीर्ष पर है. असम में बलात्कार के 1,657 मामले दर्ज किए गए. इसके बाद त्रिपुरा में 79, मेघालय में 67 और अरुणाचल प्रदेश में 60 मामले दर्ज किए गए.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, देश में 2020 में सांप्रदायिक और धार्मिक दंगों के 857 मामले दर्ज किए गए. वर्ष 2019 में ऐसे मामलों की संख्या 438 थी, जबकि 2018 में ऐसे 512 मामले दर्ज किए गए थे.
एनसीआरबी के मुताबिक़, साल 2020 में फेक न्यूज़ के 1,527 मामले रिपोर्ट किए गए, जो साल 2019 में आए 486 और साल 2018 के 280 मामलों की तुलना में काफ़ी अधिक हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आंकड़ों अनुसार, साल 2020 में कोविड नियमों का उल्लंघन करना प्रमुख अपराधों की श्रेणी में रहा. कुल 66,01,285 संज्ञेय अपराध दर्ज किए गए, जिसमें आईपीसी के तहत 42,54,356 मामले और विशेष एवं स्थानीय क़ानून के तहत 23,46,929 मामले दर्ज किए गए.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में साल 2020 में रोज़ाना औसतन 80 हत्याएं और 77 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए हैं. प्रतिदिन औसतन 80 हत्याओं के साथ कुल 29,193 लोगों की हत्या की सूचनाएं दर्ज की गईं, जिसमें उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है. इस वर्ष बलात्कार की 28,046 घटनाएं हुईं, जिसमें राजस्थान में सर्वाधिक मामले सामने आए हैं.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राजस्थान से बच्चों की तस्करी के संबंध में मिली शिकायत को लेकर कहा कि स्वतंत्रता के 70 साल बाद भी बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए विभिन्न क़ानूनों और योजनाओं के बावजूद बाल मज़दूरी और बच्चों की तस्करी का जारी रहना राज्य की मशीनरी पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है.
‘कांस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप’ के तत्वाधान में 108 पूर्व नौकरशाहों द्वारा लिखे पत्र में कहा गया है कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) पांच दशकों से अधिक समय से भारत की क़ानून की किताबों में मौजूद है और हाल के वर्षों में इसमें किए गए संशोधनों ने इसे निर्मम, दमनकारी और सत्तारूढ़ नेताओं तथा पुलिस के हाथों घोर दुरुपयोग करने लायक बना दिया है.
इस बीच केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बताया कि 2019 में ग़ैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम क़ानून यूएपीए के तहत 1,948 लोगों को गिरफ़्तार किया गया और 34 आरोपियों को दोषी ठहराया गया. एक अन्य सवाल के जवाब में बताया गया कि 31 दिसंबर 2019 तक देश की विभिन्न जेलों में 4,78,600 कै़दी बंद थे, जिनमें 1,44,125 दोषी ठहराए गए थे जबकि 3,30,487 विचाराधीन व 19,913 महिलाएं थीं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ये आंकड़े देश में कोविड-19 के प्रसार चलते बड़ी संख्या में नौकरियां जाने के पहले के हैं. इनके अनुसार, साल 2019 में बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या के सर्वाधिक 553 मामले कर्नाटक में दर्ज हुए. दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र और तीसरे स्थान पर तमिलनाडु रहा.
बच्चों की आत्महत्या संंबधी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों को हाल ही में संसद में पेश किया गया. 2017-2019 के बीच 24,568 बच्चों ने आत्महत्या की, जिनमें 13,325 लड़कियां शामिल हैं. 4,046 बच्चों ने परीक्षा में असफल रहने और 639 बच्चों ने विवाह से जुड़े मुद्दों को लेकर आत्महत्या की है.
वकील वृंदा ग्रोवर ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि 2019 में राजद्रोह के 30 मामलों में फ़ैसला आया, जहां 29 में आरोपी बरी हुए और महज़ एक में दोषसिद्धि हुई. ग्रोवर ने बताया कि 2016 से 2019 के बीच ऐसे मामलों की संख्या 160 प्रतिशत तक बढ़ी है.
जहां देश में एक तरफ ट्रांसजेंडर पहचान रखने वाले लोगों के लिए क़ानूनी अधिकारों की बात होना शुरू हो रहा है, वहीं दूसरी ओर देश की जेलों में बंद ऐसे लोग ज़रूरी हक़ों और सुविधाओं से भी महरूम हैं.
जेलें क़ैदियों को उनके अपराध के आधार पर वर्गीकृत कर सकती हैं, लेकिन जेलों, ख़ासतौर पर महिला जेलों में वर्गीकरण सिर्फ अपराधों से तय नहीं होता है. यह सदियों की परंपराओं और अक्सर धर्म द्वारा स्थापित नैतिक लक्ष्मण रेखा लांघने से जुड़ा है. ऐसे में भारतीय महिलाएं जब जेल जाती हैं, तब वे अक्सर जेल के भीतर एक और जेल में दाख़िल होती हैं.
लोकसभा में केंद्र सरकार ने एक हालिया जवाब में बताया था कि साल 2016-2019 के बीच यूएपीए के तहत दर्ज मामलों में से केवल 2.2 फीसदी में सज़ा हुई है.