केंद्र द्वारा निरस्त किए गए तीन कृषि क़ानूनों पर विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था. बीते साल सौंपी गई उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई थी. अब समिति के एक सदस्य अनिल घानवत ने इसे जारी करते हुए कहा कि 85.7 प्रतिशत किसान संगठन क़ानूनों के समर्थन में थे.
मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी केन-बेतवा लिंक परियोजना के तहत मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले में 10 गांवों को विस्थापित किया जाना है. ग्रामीणों का कहना है कि पहले से ही तमाम बुनियादी सुविधाओं के बिना चल रही उनकी ज़िंदगी को यह प्रोजेक्ट यातनागृह में तब्दील कर देगा. उन्हें यह डर भी है कि तमाम अन्य परियोजनाओं की तरह उन्हें उचित मुआवज़ा नहीं मिलेगा.
दस्तावेज़ दर्शाते हैं कि केंद्र ने केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के तहत जल बंटवारे के समाधान के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की कई ऐसी शर्तों को स्वीकार किया है, जिसके चलते अतिरिक्त संरचनाओं का निर्माण करना होगा. नतीजतन कुल लागत में बढ़ोतरी होगी और सरकार ने जिस लाभ का दावा किया है, वह झूठा साबित होगा.
द वायर को प्राप्त दस्तावेज़ों के अनुसार, जल शक्ति मंत्रालय के पूर्व सचिव यूपी सिंह ने केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के तहत मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की पानी की ज़रूरतों की आपूर्ति के लिए तैयार प्रावधानों पर सहमति नहीं जताई थी. उनका कहना था यदि इसे लागू किया गया तो परियोजना दूसरी दिशा में चली जाएगी और लागत काफी बढ़ जाएगी.
विवादित केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के समझौते को अंतिम रूप देते समय केन नदी में जल की मात्रा का पता लगाने के लिए नया अध्ययन कर आंकड़ों को अपडेट करने की ज़रूरत महसूस की गई. लेकिन एक अधिकारी के निर्देश पर पुराने डेटा को बरक़रार रखा गया और अंत में इसी आधार पर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने क़रार पर दस्तख़त कर दिए.
द वायर द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि केन-बेतवा प्रोजेक्ट के तहत सरकार जितनी ज़मीन प्रतिपूरक वनीकरण के रूप में दिखा रही है, उसमें से भी काफ़ी स्थानीय निवासियों की निजी भूमि है.
बीते मार्च महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच विवादित केन-बेतवा लिंक परियोजना संबंधी क़रार पर दस्तख़त किए गए. सुप्रीम कोर्ट की एक समिति ने इस पर गंभीर सवाल उठाए थे, हालांकि दस्तावेज़ दर्शाते हैं कि मोदी सरकार ने इन्हें नज़रअंदाज़ किया.
सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2020 में इसके द्वारा नियुक्त सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी को निर्देश दिया था कि वे राज्य में रेत खनन से संबंधित आरोपों पर विचार कर इसे रोकने के लिए एक रिपोर्ट पेश करें. रिपोर्ट में कमेटी ने राज्य सरकार के साथ पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की भी आलोचना की है.