जम्मू कश्मीर प्रशासन ने एक आदेश में कहा है कि प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत भूमिहीनों के लिए भूमि केवल इस केंद्रशासित प्रदेश के निवासियों को ही दी जाएगी. वहीं पीडीपी ने प्रशासन पर भूमिहीनों को ज़मीन देने की इस योजना की आड़ में बाहरी लोगों को बसाने का आरोप लगाया है.
उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) की बैठक से पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय के समिति से मिलने वाले लद्दाख के नेताओं ने कहा है कि अगर एजेंडा में राज्य का दर्जा और विशेष दर्जे पर बातचीत शामिल नहीं हुई तो वे आगामी बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे.
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार स्पष्ट रूप से हार के डर से चुनाव की बात आगे नहीं बढ़ा रही है. उन्होंने जोड़ा की चुनाव आयोग को यह कहने का साहस जुटाना चाहिए कि वे दबाव में हैं और यहां चुनाव नहीं करा सकते.
जम्मू कश्मीर की स्थिति पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने कहा कि लोकतंत्र तब होता है, जब एक निर्वाचित सरकार होती है. एक राज्यपाल और उनके सलाहकार पूरे राज्य की देखभाल नहीं कर सकते. ये विधायक होते हैं, जो अपने क्षेत्रों की देखभाल करते हैं, इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि यहां चुनाव हो.
केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि 2019 के बाद से न तो किसी बाहरी व्यक्ति ने लद्दाख में कोई ज़मीन खरीदी है और न ही किसी बाहरी कंपनी ने इस केंद्रशासित प्रदेश में निवेश किया है. केंद्र ने जोड़ा कि केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में पिछले तीन वर्षों में 185 बाहरी लोगों ने ज़मीन खरीदी है.
केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया कि हरियाणा-हिमाचल प्रदेश, लद्दाख-हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र-कर्नाटक, असम-अरुणाचल प्रदेश, असम-नगालैंड, असम-मेघालय, असम-मिज़ोरम के बीच सीमांकन और क्षेत्रों को लेकर दावों-प्रतिदावों के कारण सीमा विवाद है.
साल 2019 में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को समाप्त करने और और तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने के बाद लद्दाख क्षेत्र के लोग भारत के अन्य आदिवासी क्षेत्रों को संविधान की छठी अनुसूची के तहत प्रदान किए गए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं, जिससे उनकी जनसांख्यिकी, नौकरी और भूमि की रक्षा हो.
प्रदर्शन के दौरान लेह अपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस की ओर से कहा गया कि इस सरकार के रवैये को देखते हुए हमने अपना आंदोलन तेज़ करने का फैसला किया है. यह विरोध उसी का हिस्सा है. अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो हम हड़ताल पर चले जाएंगे.
केंद्र सरकार लद्दाख में सरकारी नौकरियों को लेकर 5 अगस्त 2019 से पहले की स्थिति बहाल कर रही है. गृह मंत्रालय ने 1 नवंबर 2022 को जारी एक अधिसूचना में उपराज्यपाल राधा कृष्ण माथुर को गजेटेड या समूह 'ए' और समूह 'बी' के सार्वजनिक सेवा पदों पर भर्ती के नियम बनाने का अधिकार दिया है.
केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के करगिल और लेह ज़िलों में स्थानीय संगठनों के नेतृत्व में लोगों ने सड़कों पर रैली निकालकर राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग के साथ-साथ लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष दर्जा देने की भी मांग की.
जम्मू कश्मीर के क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने इस क़दम की आलोचना की है. पूर्व मुख्यमंत्रियों- उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती ने केंद्रशासित प्रदेश को रियल एस्टेट निवेशकों के लिए खोलने को लेकर प्रशासन पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि क्षेत्र की जनसांख्यिकी को बदलने के लिए ऐसा किया जा रहा है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद उस जी-23 समूह का हिस्सा हैं, जिसने पिछले साल पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर दल के ढांचे में व्यापक बदलाव की मांग की थी.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद जी-23 का हिस्सा हैं- इस समूह ने पिछले साल पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर दल के ढांचे में व्यापक बदलाव की मांग की थी. अब पांच सदस्यीय नई अनुशासनात्मक कार्रवाई समिति का पुनर्गठन कर दोबारा इसकी ज़िम्मेदारी पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी को ही सौंपी गई है.
कांग्रेस की जम्मू कश्मीर इकाई के सात प्रमुख नेताओं समेत क़रीब 20 नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना त्यागपत्र भेजा. नेतृत्व बदलाव की मांग के साथ उन्होंने कहा कि सूबे में उन्हें पार्टी संबंधित मामलों पर अपनी बात रखने का मौक़ा नहीं दिया गया. इन नेताओं में चार पूर्व मंत्री और तीन पूर्व विधायक भी शामिल हैं.
बिलाल लोन और मीरवाइज़ जैसे अलगाववादियों के अलावा निगरानी के संभावित लक्ष्यों की सूची में सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले दिल्ली के एक प्रमुख कार्यकर्ता, कई पत्रकार और मुख्यधारा के कुछ नेताओं के परिवार के सदस्य शामिल हैं.