रामदेव ने शेल कंपनियों के जाल के ज़रिये कैसे खड़ा किया रियल एस्टेट का साम्राज्य?

द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की पड़ताल बताती है कि योग गुरु और कारोबारी रामदेव रियल एस्टेट के क्षेत्र के अगुवा हैं, जहां उनके परिवार के लोगों और क़रीबियों ने शेल कंपनियों के ज़रिये हरियाणा में कई एकड़ ज़मीन ख़रीदी-बेची है.

बिहार जाति सर्वेक्षण: कौन हैं जो दोनवार कहे गए?

जाति परिचय: बिहार में हुए जाति आधारित सर्वे में उल्लिखित जातियों से परिचित होने के मक़सद से द वायर ने एक श्रृंखला शुरू की है. सत्रहवां भाग दोनवार जाति के बारे में है.

भारतीय क्रिकेट टीम पर उस देश की उम्मीदों का बोझ था, जो हमेशा विजेता रहना चाहता है

क्रिकेट विश्वकप में घरेलू टीम को मिलने वाले फायदों के बारे में बहुत कुछ कहा गया है- भारतीयों को पूरा समर्थन देने वाले 1,00,000 से अधिक प्रशंसक मनोबल बढ़ाने वाले हो सकते हैं, लेकिन यह एक तरह का दबाव भी है.

यूपी: अयोध्या में अब जब डेंगू नया रिकॉर्ड बना रहा है, तो कहीं दर्ज क्यों नहीं हो रहा?

इस बार दीपावली के अवसर पर जब उत्तर प्रदेश सरकार अयोध्या में दीपोत्सव मना रही थी, शहर के लोगों में डेंगू का भय समाया हुआ था. 2021 में ज़िले में डेंगू के कुल 571 व 2022 में कुल 668 मरीज़ मिले थे, वहीं इस साल अब तक यह आंकड़ा आठ सौ के पार जा चुका है.

बिहार जाति सर्वेक्षण: चिराग तले अंधेरे की स्थिति में रहे बारी और बौरी

जाति परिचय: बिहार में हुए जाति आधारित सर्वे में उल्लिखित जातियों से परिचित होने के मक़सद से द वायर ने एक श्रृंखला शुरू की है. पंद्रहवां भाग बारी व बौरी जाति के बारे में है.

पूंजीवादी मानसिकता में स्वार्थ एक परम मूल्य बन गया है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: स्वार्थी सामुदायिकता का परिणाम यह हुआ है कि बुद्धि और ज्ञान, सृजन और विचार की हमारे समय, समाज और सामाजिक जीवन में उपस्थिति और हस्तक्षेप घट गए हैं. वे सभी मंच सिकुड़ते जा रहे हैं जहां ऐसी उपस्थिति, ऐसा हस्तक्षेप संभव और आवश्यक हो पाता.

कोयले के आयात पर अडानी समूह की कथित अनियमितताएं फिर सवालों के घेरे में

एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अडानी एंटरप्राइजेज और इसकी सहायक कंपनियां अदालती आदेशों के ज़रिये उन दस्तावेज़ों को जारी होने से रोक रही हैं जिनसे अडानी समूह द्वारा भारत में कोयला आयात का अधिक मूल्य लगाने, जिसके चलते उपभोक्ताओं को महंगी बिजली खरीदनी पड़ी है, की बात सामने आती है.

गाज़ा की घेराबंदी मानवता के ख़िलाफ़ अपराध है

फ़िलिस्तीन और इज़रायल की ख़ातिर, जो ज़िंदा हैं उनकी ख़ातिर और जो मारे गए उनके नाम पर, हमास के हाथों बंधक बनाए गए लोगों की ख़ातिर और इज़रायली जेलों में बंद फ़िलिस्तीनियों की ख़ातिर, सारी इंसानियत की ख़ातिर, गाज़ा पर हमला फ़ौरन बंद होना चाहिए.

मध्य प्रदेश: पिछले पांच सालों में सरकार ने जनता के लिए क्या किया?

मध्य प्रदेश में चौदहवीं विधानसभा (2018-2023) ने भाजपा और कांग्रेस, दो सरकारों को देखा, जहां जनता ने राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं, दल-बदल तो देखे ही, साथ ही बढ़ती कट्टरता और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को पैठ बनाते देखा. इन पांच सालों के घटनाक्रमों से प्रदेश में भविष्य की राजनीति की दिशा समझी जा सकती है. 

बिहार जाति सर्वेक्षण: कमार समाज को उचित सम्मान और भागीदारी मिलने चाहिए

जाति परिचय: बिहार में हुए जाति आधारित सर्वे में उल्लिखित जातियों से परिचित होने के मक़सद से द वायर ने एक श्रृंखला शुरू की है. तेरहवां भाग कमार जाति के बारे में है.

मध्य प्रदेश चुनाव: क्या शिवराज कांग्रेस के साथ ही मोदी-शाह की चुनौती से भी जूझ रहे हैं?

विधानसभा चुनाव में भाजपा ने केंद्रीय मंत्री समेत सांसदों और वरिष्ठ नेताओं को उतारा, फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भाषण आदि में मौजूदा सीएम का कोई ज़िक्र नहीं हुआ. ऐसे में पार्टी का संभावित मुख्यमंत्री के सवाल पर गोलमोल जवाब देना शिवराज सिंह चौहान के मध्य प्रदेश की राजनीति में भविष्य पर सवाल खड़े करता है.

नई सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक संभावनाओं की तलाश करती है ‘बॉडी ऑन द बैरिकेड्स’

पुस्तक समीक्षा: जेएनयू प्रोफेसर ब्रह्म प्रकाश की किताब 'बॉडी ऑन द बैरिकेड्स- लाइफ, आर्ट एंड रेसिस्टेंस इन कंटेंपररी इंडिया’ पन्ना-दर-पन्ना समझाती है कि फासीवाद के इस दौर में कभी भूमि सुधार की मांग करने वाले लोग अब राज्य द्वारा उनके घरों पर बुलडोजर चलाने के आपराधिक कृत्य का विरोध तक नहीं कर पा रहे हैं.

ज़माना ‘सांच बराबर तप, झूठ बराबर पाप’ का नहीं रहा, तो दीपावली को झूठ पर सच की जीत का पर्व कैसे कहें

विशेष: दीपावली को बुराई पर अच्छाई, अंधेरे पर प्रकाश की जीत का पर्व माना जाता है. झूठ पर सच की जीत का भी. पर ऐसा क्यों है कि हर दीपावली पर बुराइयां, अंधेरे और झूठ घटने के बजाय पिछली बार के मुक़ाबले बढ़े दिखते हैं.

आचार्य जेबी कृपलानी: महात्मा गांधी के ‘दाहिने हाथ’, जो उनके जाते ही ‘कांग्रेसद्रोही’ हो गए थे

जन्मदिन विशेष: स्वतंत्रता सेनानियों की ‘गांधीवादी-समाजवादी’ जमात के सदस्य और दर्शन व इतिहास के लोकप्रिय व्याख्याता रहे जेबी कृपलानी को उनकी ‘चिर असहमति’ के लिए भी जाना जाता है. इसका नतीजा यह भी रहा कि वे बार-बार अपनी भूमिकाएं पुनर्निर्धारित करते रहे. 

नरेंद्र मोदी के अमृत काल में क्या है भूख और बेरोज़गारी का हाल?

क्या प्रधानमंत्री मोदी यह बता सकते हैं कि 'सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, जो 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह' पर है, उसे 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज क्यों बांटना पड़ रहा है?

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