स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने हाल ही में अधिसूचित नए आईटी नियमों को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी है. उनकी याचिका ख़ारिज करने की मांग करते हुए सरकार ने कहा है कि नए नियमों के तहत बनने वाली फैक्ट-चेक इकाई सोशल मीडिया से किसी व्यंग्य या किसी राय को नहीं हटाएगी.
द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टिट्यूट के पूर्व कार्यकारी उपाध्यक्ष आरके पचौरी ने यह दावा करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का रुख़ किया था कि मीडिया घरानों ने जान-बूझकर और तिरस्कारपूर्वक अदालत के पहले के आदेशों की अवहेलना की, जिसमें यौन उत्पीड़न के आरोपों से संबंधित उनके ख़िलाफ़ दावों को प्रकाशित करने से रोक दिया गया था.
सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत नवंबर 2019 में प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो में एक फैक्ट-चेक इकाई बनाई थी, जिसे केंद्र से संबंधित फ़र्ज़ी ख़बरों के स्वत: संज्ञान के साथ नागरिकों द्वारा भेजे प्रश्नों के माध्यम से संज्ञान लेने का काम मिला था. इसे सही जानकारी के साथ इन सवालों का जवाब देने और सोशल मीडिया पर किसी भी ग़लत सूचना को चिह्नित करने का भी काम सौंपा गया है.
जम्मू कश्मीर की समाचार वेबसाइट ‘द कश्मीर वाला’ के संपादक फ़हद शाह के ख़िलाफ़ जन सुरक्षा क़ानून के तहत कार्यवाही को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने इसके तहत उनके हिरासत के आधार को ‘केवल संदेह के आधार पर’ और ‘मामूली दावा’ क़रार दिया. फरवरी 2022 में फ़हद को आतंकवाद का महिमामंडन करने, फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाने और जनता को भड़काने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.
इस महीने की शुरुआत में अधिसूचित नए आईटी नियम कहते हैं कि सरकारी फैक्ट-चेक इकाई द्वारा ‘फ़र्ज़ी या भ्रामक’ क़रार दी गई सामग्री को गूगल, फेसबुक, ट्विटर आदि सोशल मीडिया कंपनियों और इंटरनेट सेवा प्रदाता को हटाना ही होगा. स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने इसके ख़िलाफ़ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की है.
जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा केंद्र और प्रधानमंत्री मोदी पर पुलवामा आतंकी हमले को लेकर लगाए गए गंभीर आरोपों को भारतीय मीडिया ने क़रीब-क़रीब अनदेखा कर दिया है. इस पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा है कि ख़बर को दबाने में कोई राष्ट्रीय सुरक्षा हित नहीं है. ऐसी अनदेखी केवल सत्तारूढ़ भाजपा के हित पूरे करती है.
इस महीने की शुरुआत में अधिसूचित नए आईटी नियम कहते हैं कि सरकारी फैक्ट-चेक इकाई द्वारा ‘फ़र्ज़ी या भ्रामक’ क़रार दी गई सामग्री को गूगल, फेसबुक, ट्विटर आदि सोशल मीडिया कंपनियों और इंटरनेट सेवा प्रदाता को हटाना ही होगा. इन नियमों को सेंसरशिप बताते हुए इनकी व्यापक आलोचना की गई है.
ट्विटर के प्रमुख एलन मस्क ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि वह संभवत: भारत सरकार द्वारा जारी ब्लॉकिंग आदेशों का पालन करते हैं, क्योंकि वह ऐसे हालात का सामना करना नहीं चाहते हैं, जहां ट्विटर के कर्मचारियों को जेल भेजा जा रहा हो.
बीबीसी द्वारा जनवरी में गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका को रेखांकित करने वाली डॉक्यूमेंट्री रिलीज़ किए जाने के बाद फरवरी में इसके दिल्ली और मुंबई के कार्यालयों में आयकर विभाग ने 'सर्वे' किया था. अब ईडी ने इसके ख़िलाफ़ कथित 'विदेशी मुद्रा उल्लंघन' का मामला दर्ज किया है.
बीते 6 अप्रैल को अधिसूचित नए आईटी नियमों में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को एक फैक्ट-चेक इकाई का गठन करने का अधिकार होगा, जो केंद्र सरकार के किसी भी काम के संबंध में फ़र्ज़ी, झूठी या भ्रामक ख़बर का पता लगाएगा. मीडिया संगठनों ने इसे सेंसरशिप के समान बताया है.
पत्रकार और आरटीआई कार्यकर्ता सौरव दास ने बीते 7 अप्रैल को एक स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए कहा कि उनके इस ट्वीट पर केवल भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर रोक लगा दी गई है. इस स्क्रीनशॉट में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का एक बयान है. उन्होंने कहा कि इस पर रोक लगाने के संबंध में ट्विटर ने उन्हें कोई जानकारी नहीं दी है.
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा अधिसूचित नए आईटी नियमों में कहा गया है कि गूगल, फेसबुक, ट्विटर आदि कंपनियां सरकारी फैक्ट-चेक इकाई द्वारा 'फ़र्ज़ी या भ्रामक' क़रार दी गई सामग्री इंटरनेट से हटाने को बाध्य होंगी. एडिटर्स गिल्ड ने कहा है कि इससे प्रेस की आज़ादी प्रभावित होगी.
सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 को संशोधित करते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की गजट अधिसूचना गुरुवार को जारी की गई. इसमें कहा गया है कि गूगल, फेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनियां सरकारी फैक्ट-चेकर द्वारा 'झूठी या भ्रामक जानकारी' बताई गई सामग्री को हटाने के लिए बाध्य होंगी.
गृह मंत्रालय ने 2021 में मलयालम न्यूज़ चैनल ‘मीडिया वन’ को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का हवाला देते हुए सुरक्षा मंज़ूरी देने से इनकार के बाद जनवरी 2022 में इसके प्रसारण पर रोक लगाने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के निर्णय को रद्द करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर लोगों को अधिकारों से वंचित करने की आलोचना की है.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पिछले सप्ताह पंजाब में कई पत्रकारों और मीडिया संगठनों के सोशल मीडिया एकाउंट के निलंबन पर चिंता जताते हुए कहा कि सरकार की कार्रवाइयां सुरक्षा बनाए रखने के बहाने प्रेस की स्वतंत्रता को कमज़ोर करती हैं. अलगाववादी नेता अमृतपाल सिंह को गिरफ़्तार करने के क्रम में सरकार ने कई पत्रकारों के अलावा अन्य लोगों के सोशल मीडिया एकाउंट को निलंबित कर दिया है.