‘न्यूज़क्लिक’ को जनता को बाख़बर रखने के साथ ख़बरदार करने की सज़ा मिल रही है

सरकार के जिस कदम से देश का नुक़सान हो, उसकी आलोचना ही देशहित है. 'न्यूज़क्लिक’ की सारी रिपोर्टिंग सरकार के दावों की पड़ताल है लेकिन यही तो पत्रकारिता है. अगर सरकार के पक्ष में लिखते, बोलते रहें तो यह उसका प्रचार है. इसमें पत्रकारिता कहां है?

मनोज झा के भाषण को लेकर विवाद की जडे़ं सिर्फ वहीं नहीं, जहां बताई जा रही हैं 

सामाजिक न्याय के लिए लड़ने का दावा करने वाले हिंदुत्ववादी शक्तियों से किसी सुविचारित दीर्घकालिक रणनीति के बजाय चुनावी समीकरणों के सहारे निपटते रहे. इसने उन्हें सत्ता दिलाई तो भी सामाजिक न्यायोन्मुख नीतियां लागू व कार्यक्रम चलाकर उसकी अपील का विस्तार नहीं किया. 

बाहरी भाषा-व्यवहार और संसदीय भाषा-व्यवहार के बीच भद्रता की दीवार दरक रही है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पिछले एकाध दशक में गाली का व्यवहार बहुत फैला और मान्य हुआ है. हम इसे अपने लोकतंत्र का गाली-समय भी कह सकते हैं.

मनोज झा के वक्तव्य पर प्रतिक्रिया ने दिखाया कि ‘उच्च जातियां’ अपना वर्चस्व नहीं छोड़ना चाहतीं

मनोज झा के एक वक्तव्य पर जिस प्रकार की हिंसक प्रतिक्रिया हुई है, उससे वर्चस्वशाली समुदाय के हिंसक स्वभाव को समझा जा सकता है.

महिला आरक्षण बिल किसी राजनीतिक दल का नहीं, महिला संगठनों का है

लोकसभा व विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने वाला बिल सोच और ड्राफ्ट के स्तर पर न भाजपा का है न कांग्रेस का, बल्कि विशुद्ध रूप से महिला संगठनों का है. लेकिन विडंबना ही है कि प्रधानमंत्री द्वारा लाए गए बिल में महिला संगठनों की भूमिका का प्रस्तावना तक में कोई ज़िक्र तक नहीं है.

कल्पना और कौशल के बिना स्वतंत्रता कहीं भी संभव नहीं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: परम स्वतंत्रता न तो जीवन में संभव है और न ही सृजन में. फिर भी सृजन में ऐसी स्वतंत्रता पा सकना संभव है जो व्यापक जीवन में नहीं मिलती या मिल सकती.

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा मुस्लिम विरोधी गाली संस्कृति का क़ायदे से निर्माण कर रही है

भाजपा की संस्कृति बदज़बानी और बदतमीज़ी की संस्कृति है. प्रतिपक्षियों, मुसलमानों को अपमानित करके उन्हें साबित करना होता है कि वे भाजपा के नेता माने जाने लायक़ हैं. बिधूड़ी सिर्फ़ सबसे ताज़ा उदाहरण हैं.

मोदी सरकार के ‘विकास’ मॉडल में ग़रीब रोटी को तरस रहा है और पूंजीपति रईस हो रहे हैं

2023 में भारतीय अर्थव्यवस्था बेतहाशा महंगाई और आय असमानता का सामना कर रही है. बढ़ती महंगाई अकेले बाज़ार ताक़तों के चलते नहीं है, बल्कि यह उस सरकारी रवैये का नतीजा है जहां एक वर्ग को दूसरे पर प्राथमिकता दी जाती है.

‘जवान’ के साथ शाहरुख़ ख़ान ने सवाल पूछने को आकर्षक बना दिया है

शाहरुख़ ख़ान की 'जवान' का स्पष्ट राजनीतिक संदेश यह है कि 'सक्रिय नागरिकों' की निरंतर निगरानी के बिना लोकतंत्र को नेताओं के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता.

भारत में लोकतंत्र की गिरावट का असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा

जो लोग यक़ीन करते हैं कि भारत अब भी एक लोकतंत्र है, उनको बीते कुछ महीनों में मणिपुर से लेकर मुज़फ़्फ़रनगर तक हुई घटनाओं पर नज़र डालनी चाहिए. चेतावनियों का वक़्त ख़त्म हो चुका है और हम अपने अवाम के एक हिस्से से उतने ही ख़ौफ़ज़दा हैं जितना अपने नेताओं से.

‘ह्वाइल वी वॉच्ड’ लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्ष में खड़े एक निहत्थे पत्रकार की वेदना है

‘ह्वाइल वी वॉच्ड’ डॉक्यूमेंट्री घने होते अंधेरों की कथा सुनाती है कि कैसे इसके तिलस्म में देश का लोकतांत्रिक ढांचा ढहता जा रहा है और मीडिया ने तमाम बुनियादी मुद्दों और ज़रूरी सवालों की पत्रकारिता से मुंह फेर लिया है.

जब सांप्रदायिकता और पत्रकारिता में भेद मिट जाए, तब इसका विरोध कैसे करना चाहिए?

जब पत्रकारिता सांप्रदायिकता की ध्वजवाहक बन जाए तब उसका विरोध क्या राजनीतिक के अलावा कुछ और हो सकता है? और जनता के बीच ले जाए बग़ैर उस विरोध का कोई मतलब रह जाता है? इस सवाल का जवाब दिए बिना क्या यह समय बर्बाद करने जैसा नहीं है कि 'इंडिया' गठबंधन का तरीका सही है या नहीं.

पाशविकता के कई हज़ार वर्ष

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: वर्ण भेद की सामाजिक व्यवस्था का इतनी सदियों से चला आना इस बात का सबूत है कि उसमें धर्म निस्संदेह और निस्संकोच लिप्त रहा है.

जस्टिस चंद्रू जैसी शख़्सियतें भले ही किसी की रोल माॅडल न रह गई हों, लेकिन उन पर चर्चा ज़रूरी है

वकालत की अपनी पारी को विराम देकर जस्टिस के. चंद्रू 31 जुलाई, 2006 को जब मद्रास उच्च न्यायालय के जज बने तो मामलों की सुनवाई और फैसलों की गति ही नहीं तेज की, न्याय जगत की कई पुरानी औपनिवेशिक परंपराओं और दकियानूसी रूढ़ियों को भी तोड़ डाला. साथ ही कई नई और स्वस्थ परंपराओं का निर्माण भी किया.

क्या सनातन धर्म को पूरे हिंदू समुदाय से जोड़ा जा सकता है?

'सनातन धर्म' को लेकर हालिया विवाद में भाजपा के रवैये के विपरीत हिंदुत्व के सबसे प्रभावशाली विचारक विनायक दामोदर सावरकर ने शायद ही कभी 'सनातन धर्म' को पूरे हिंदू समुदाय से जोड़ा. 

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