75 साल पहले गांधी ने जिसे अनहोनी कहा था, वह आज घटित हो रही है

गांधी ने लिखा था कि कभी अगर देश की 'विशुद्ध संस्कृति' को हासिल करने का प्रयास हुआ तो उसके लिए इतिहास फिर से लिखना होगा. आज ऐसा हो रहा है. यह साबित करने के लिए कि यह देश सिर्फ़ हिंदुओं का है, हम अपना इतिहास मिटाकर नया ही इतिहास लिखने की कोशिश कर रहे हैं.

‘इकतारा’ हिंदी में बाल साहित्य बचाए रखने का एक सार्थक प्रयास है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: बाल साहित्य का परिसर कौतूहल रहस्य, जिज्ञासा, सहज सुषमा, आश्चर्य, अप्रत्याशित आदि मनोभावों से समृद्ध होता है. हम एक तरह की अबोधता के अंचल में दाखिल होते हैं जो हमें अपने कई अपरीक्षित, पर गहरे धंसे पूर्वाग्रहों से मुक्त करता है.

ईरान की औरतों का विद्रोह अपने तरीक़े से जीने के हक़ को कुचले जाने के ख़िलाफ़ रोष का इज़हार है

ईरान में अगर गश्ती दस्ते हिजाब जबरन पहना रहे हैं तो भारत में सरकारी गश्ती दस्ते जबरन हिजाब उतार रहे हैं. फ़र्क़ यह है कि ईरान में एक इस्लामी हुकूमत मुसलमानों को अपने हिसाब से पाबंद करना चाहती है और भारत में एक हिंदू हुकूमत मुसलमानों को अपने क़ायदों में क़ैद करना चाहती है.

हबीब तनवीर, जिनका जीवन पूरी तरह से रंगजीवी रहा

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हबीब तनवीर का रंगसत्य लोग थे: लोग, जो साधारण और नामहीन थे, जो अभाव और विपन्नता में रहते थे लेकिन जिनमें अदम्य जिजीविषा, मटमैली पर सच्ची गरिमा और सतत संघर्षशीलता की दीप्ति थी.

फ़ासीवादियों की देशभक्ति नहीं, उनकी दूसरों से घृणा उन्हें परिभाषित करती है

आरएसएस को फ़ासीवादी संगठन कहने पर कुछ लोग नाराज़ हो उठते हैं. उनका तर्क है कि वह देशभक्त संगठन है. क्या देश में रहने वाली आबादियों के ख़िलाफ़ घृणा पैदा करते हुए, उनके ख़िलाफ़ हिंसा करते हुए देशभक्ति की जा सकती है?

ज्ञानवापी: किसी एक मस्जिद को विवादित करने का अर्थ बहुसंख्यकवादी विस्तारवाद को शह देना है

ज्ञानवापी मामले में बनारस की अदालत ने अभी इतना ही कहा है कि हिंदू महिला याचिकाकर्ताओं की याचिका विचारणीय है. इस निर्णय को हिंदुओं की जीत कहकर मीडिया प्रचारित कर रहा है. इससे आगे क्या होगा, यह साफ़ है. वहीं, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री मथुरा की धमकी दे रहे हैं.

श्रीकांत वर्मा: तुम जाओ अपने बहिश्त में, मैं जाता हूं अपने जहन्नुम में

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: श्रीकांत वर्मा ने कहा था कि ‘कैंसर से मरती हैं हस्तियां/हैजे से बस्तियां/वकील रक्तचाप से/कोई नहीं मरता/अपने पाप से.' क्या हम आज ऐसे ही नीति-शून्य लोकतंत्र में नहीं रह रहे हैं? कवि आपको किसी नरक या पाप से मुक्ति नहीं दिला सकता: वह उसकी शिनाख़्त करने का साहस भर दे सकता है.

‘कर्तव्य पथ’ के रास्ते सरकार ने ख़ुद को देशवासियों के प्रति कर्तव्य से आज़ाद कर लिया है

सरकार हमें बार-बार कह रही है कि देशवासियों ने अपने अधिकारों की दुहाई दे-देकर पिछले 75 साल बर्बाद कर दिए हैं. वक़्त आ गया है कि वे अब राज्य के प्रति अपने कर्तव्य को याद करें. कर्तव्य में बहुत आकर्षण है. गीता की याद दिलाई जा सकती है. कर्तव्य का नाम लेकर लोगों को शर्मिंदा किया जा सकता है.

राजपथ को ग़ुलामी का प्रतीक क्यों समझा गया?

नाम बदलकर बदलाव का भ्रम रचना दरअसल ऐसा करने वालों द्वारा यह स्वीकार लेना है कि उनके पास अपने काम से कोई बदलाव लाने का न बूता बचा है, न विवेक. अन्यथा अब तक वे इतना तो समझ ही गए होते कि ग़ुलामी के प्रतीकों की उनकी समझ कितनी नासमझी भरी है.

प्रधानमंत्री जी, कुपोषण की समस्या भजन से नहीं भोजन से दूर होती है

बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में कुपोषण की समस्या पर बात करते हुए श्रोताओं से कहा कि क्या वे जानते हैं कि भजन, गीत और संगीत के माध्यम से कुपोषण कम किया जा सकता है.

क्या अब अभद्रता पद और सत्ता के लिए ज़रूरी हो चली है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हमारा समय दुर्भाग्य से ऐसा हो गया है कि राजनेता किसी को कुछ भी कह सकते हैं, अभद्रता और अज्ञान से. उनके अनुयायियों की भावनाएं इस अभद्रता से आहत नहीं होतीं.

राम के बाद गणेश को हिंदुत्व की राजनीति के युद्ध में भर्ती किया जा रहा है

जगह-जगह क़ब्रिस्तान, ईदगाह की ज़मीन पर कभी पीपल लगा कर, कभी कोई मूर्ति रखकर भजन आरती शुरू करके क़ब्ज़ा करने की तरकीबें जमाने से इस्तेमाल की जाती रही हैं. अब सरकारें भी इसमें जुट गई हैं. मज़ा यह है कि अगर मुसलमान इसका विरोध करें तो उन्हें असहिष्णु कहा जाता है.

साहित्य हमारे समय में हो रहे अन्यायों की शिनाख़्त करता है और उनसे संघर्ष की प्रेरणा देता है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अच्छा साहित्य हमें हमेशा वहां ले जाता है जहां भाषा पहले न गई हो: वह हमारी अनुभूति और अभिव्यक्ति के भूगोल को विस्तृत करता है. साहित्य हमें अधिकार और शक्ति के सभी प्रतिष्ठानों से, फिर वे राज्यपरक हों या धर्म, प्रश्न पूछने की हिम्मत देता है.

झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार का भविष्य क्या है?

बिहार के कुछ हिस्सों को मिलाकर साल 2000 में अलग झारखंड राज्य बना था. हालांकि अपने गठन के बाद से ही इस राज्य को राजनीतिक स्थिरता नहीं मिल सकी है. मात्र 15 साल में राज्य ने नौ मुख्यमंत्री देखे हैं और तीन बार यहां राष्ट्रपति शासन भी लग चुका है. वर्तमान में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रांची में एक पत्थर खदान की लीज़ को लेकर विवादों के केंद्र में आ गए हैं.

मुक्ति की अनथक आकांक्षा

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: धूमिल ने दशकों पहले ‘दूसरे प्रजातंत्र’ की बात की थी, हमें अब अपना पुराना, भले अपर्याप्त, लोकतंत्र चाहिए. वह हमें पूरी तरह से मुक्त नहीं करेगा पर उस ओर बढ़ने की ऊर्जा, अवसर और साहस तो देगा.

1 25 26 27 28 29 36