ईडब्ल्यूएस आरक्षण निर्णय बराबरी के सिद्धांत पर वार है और भेदभाव को संवैधानिक मान्यता देता है

संविधान की मूल संरचना का आधार समानता है. आज तक जितने संवैधानिक संशोधन किए गए हैं, वे समाज में किसी न किसी कारण से व्याप्त असमानता और विभेद को दूर करने वाले हैं. पहली बार ऐसा संशोधन लाया गया है जो पहले से असमानता के शिकार लोगों को किसी राजकीय योजना से बाहर रखता है.

अल्लामा इक़बाल: आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूं मैं…

जन्मदिन विशेष: अपनी शायरी में इक़बाल की सबसे बड़ी ताकत यह है कि वे बेलौस होकर पढ़ने या सुनने वालों के सामने आते हैं. बिना परदेदारी के और अपनी सीमाओं को स्वीकार करते हुए...

यह दौर पत्रकारिता के राजनीतिकरण और राजनीति के पत्रकारिताकरण का है

गोदी मीडिया भाजपा का महासचिव-सा बन गया है. पूरा गोदी मीडिया पार्टी में बदल चुका है. गोदी मीडिया के बाहर मीडिया बहुत कम बचा है. इसलिए कई लोग पत्रकारिता छोड़कर पार्टियों का काम कर रहे हैं. आईटी सेल और सर्वे में करिअर बना रहे हैं.

नेपाल के स्वाभिमान व स्वतंत्रता का एहतराम किए बिना हमारे संबंध सशक्त नहीं हो सकते

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: नेपाल में हमारी अपनी सभ्यता के कुछ सुंदर रूप अब भी बचे हैं और हमें इस जीवित संरक्षण के लिए उसका कृतज्ञ होना चाहिए.

वे नेताओं की दुश्मनी के नहीं, सहयोग के परस्पर लेन-देन के दिन थे

उस दौर में हमारी राजनीति इतनी पतित हुई ही नहीं थी कि नेताओं द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वियों को दुश्मनों के रूप में देखा जाता, दुश्मन की तरह उनकी लानत-मलामत की जाती और उन्हें कमतर दिखाने या गिराने की कोशिश में ख़ुद को उनसे भी नीचे गिरा लिया जाता.

इतिहास की रणभूमि

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: भारत में इस समय विज्ञान की लगातार उपेक्षा और अवज्ञा हो रही है. इस क़दर कि वैज्ञानिक-बोध को दबाया जा रहा है. यह ज्ञान मात्र की अवमानना का समय है: बुद्धि, तर्क, तथ्य, संवाद, असहमति आदि सभी हाशिये पर फेंके जा रहे हैं.

भाजपा से ज़्यादा हिंदुत्ववादी होकर क्या पाएगी आम आदमी पार्टी

कई जानकार कह रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल के नोट-राग ने ज़रूरी मुद्दों व जवाबदेहियों से देशवासियों का ध्यान भटकाकर लाभ उठाने में भाजपा की बड़ी मदद की है. ये जानकार सही सिद्ध हुए तो केजरीवाल की पार्टी की हालत ‘माया मिली न राम’ वाली भी हो सकती है.

ऋषि सुनक का पद हिंदूपन या भारतीयता का प्रताप नहीं, ब्रिटेन के विविधता स्वीकारने का नतीजा है

ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री होना ब्रिटेन के लिए अवश्य गौरव का क्षण है क्योंकि इससे यह मालूम होता है कि ‘बाहरी’ के साथ मित्रता में उसने काफ़ी तरक्की की है. इसमें हिंदू धर्म या उसके अनुयायियों का कोई ख़ास कमाल नहीं है. यह कहना कि ब्रिटेन को भी हिंदू धर्म का लोहा मानना पड़ा, हीनता ग्रंथि की अभिव्यक्ति ही है.

क्या भारत के विश्वविद्यालयों का हाल ‘जिए के न मरे के, हुकुर-हुकुर करे के’ हो चला है

वर्धा के महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ‘गो-बारस’ के मौक़े पर पूजा के आयोजन में कर्मचारियों को सपरिवार उपस्थित रहने को कहा गया. आए दिन ऐसे आयोजन कई विश्वविद्यालयों के कैलेंडर का हिस्सा बनते जा रहे हैं और ऐसा करते हुए विश्वविद्यालय अपनी अवधारणा, सिद्धांत और कर्तव्य से बहुत दूर हो रहे हैं.

निर्मल वर्मा: साहित्य में एक जीवन

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: विनीत गिल की किताब निर्मल जीवन और लेखन का सूक्ष्म-सजग-संवेदनशील पाठ है. हर बखान या विवेचन, हर खोज या स्थापना के लिए प्राथमिक और निर्णायक साक्ष्य उनका लेखन है.

क्या हिंदी माध्यम के छात्रों को श्रेष्ठ ज्ञान का अधिकार नहीं है?

हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में पाखंड के अभ्यास के कारण ही हम मध्य प्रदेश की अधकचरी भाषा वाली मेडिकल किताबों का स्वागत करने को तैयार हैं क्योंकि हमें मालूम है कि इसका कोई असर हम पर नहीं पड़ेगा. जिन पर पड़ेगा उनसे हमारी कोई सहानुभूति है नहीं.

अब कोर्ट को संकोच छोड़कर कह देना चाहिए कि उमर का जुर्म सिर्फ़ उनका नाम उमर ख़ालिद होना है

भारत में अदालतों में न्याय अब अपवाद बनता जा रहा है. ख़ासकर जब न्याय मांगने वाले मुसलमान हों या मोदी सरकार के आलोचक या विरोधी हों.

अब हम राजनीति के समय में नहीं, ‘राजबाज़ारी’ के युग में हैं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: आज की सत्तारूढ़ राजनीति के सिलसिले में सब कुछ 'राज' पर इतना एकाग्र हो चला है कि 'नीति' लगभग ग़ायब हो गई है. नीति के राजनीति से लोप के चलते उसके लिए कोई नया शब्द गढ़ना चाहिए. इसी बीच, राज और बाज़ार का संबंध बहुत गाढ़ा हुआ है और वे एक-दूसरे के पोषक हो गए हैं.

नव बौद्ध अब मुस्लिम विरोधी हिंदुत्व की आग जलाए रखने को ईंधन बने रहने को तैयार नहीं हैं

सवर्ण समाज झूठ बोलता रहा है कि वह समानता के उसूल को मानता है. उसने किसी भी स्तर पर दलितों के साथ साझेदारी से इनकार किया. दलितों का हिंदू बने रहना मात्र एक जगह उपयोगी है- कि ‘मुसलमान, ईसाई’ के प्रति द्वेष और घृणा पर आधारित राजनीति के लिए ऐसे हिंदुओं की संख्या बढ़ती रहनी चाहिए.

बिखराव के बीज बोते हुए सद्भाव का खेल खेलते रहने में संघ को महारत हासिल है

संघ की स्वतंत्रतापूर्व भूमिकाओं की याद दिलाते रहना पर्याप्त नहीं है- उसके उन कृत्यों की पोल खोलना भी ज़रूरी है, जो उसने तथाकथित प्राचीन हिंदू गौरव के नाम पर आज़ादी के साझा संघर्ष से अर्जित और संविधान द्वारा अंगीकृत समता, बहुलता व बंधुत्व के मूल्यों को अपने कुटिल मंसूबे से बदलने के लिए बीते 75 वर्षों में किए हैं.

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