धर्म और भगवान को चुनाव में ब्रांड एंबेसडर बना देने से संविधान तथा देश की रक्षा कैसे होगी?

सवाल है कि राम मंदिर को लेकर 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतिम फैसला सुनाए जाने के बाद पूरे चार साल तक मोदी सरकार हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी रही. जवाब यही है कि 2024 के आम चुनावों के कुछ दिन पहले ही रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बहाने हिंदुत्व का डंका बजाकर वोटों की लहलहाती फसल काटना आसान बन जाए.

भारत-मालदीव विवाद की जड़ कहां है?

मालदीव के मंत्रियों द्वारा भारत के प्रधानमंत्री को लेकर की गईं अपमानजनक टिप्पणियां कोई फौरी प्रतिक्रिया थीं या इनकी वजह कहीं गहरी है?

सारे अंधेरे के बावजूद रोशनी का इंतज़ार अप्रासंगिक नहीं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: एक तरह का 'सभ्य अंधकार' छाता जा रहा है, पूरी चकाचौंध और गाजे-बाजे के साथ. लेकिन, नज़र तो नहीं आती पर बेहतर की संभावना बनी हुई है, अगर यह ख़ामख़्याली है तो अपनी घटती मनुष्यता को बचाने के लिए यह ज़रूरी है.

चंपत राय की जमात को सौहार्द का अभ्यास पहले ही नहीं था, अब हिंदू एकता भी उनसे नहीं सध रही

शैव-वैष्णव संघर्षों की समाप्ति के लिए गोस्वामी तुलसीदास द्वारा राम की ओर से दी गई ‘सिवद्रोही मम दास कहावा, सो नर सपनेहुं मोंहि न पावा’ की समन्वयकारी व्यवस्था के बावजूद चंपत राय का संन्यासियों, शैवों व शाक्तों के प्रति प्रदर्शित रवैया हिंदू परंपराओं के प्रति उनकी अज्ञानता की बानगी है.

साल 2023 में भाजपा की नीतियों के कारण भारत में हिंसा और अधिकारों का हनन हुआ: ह्यूमन राइट्स वॉच

मानवाधिकार संगठन ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में भाजपा सरकार के कार्यकाल में भेदभावपूर्ण और विभाजनकारी नीतियों के कारण अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा में बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट में धार्मिक और अन्य अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ भेदभावपूर्ण प्रथाओं को उजागर करते हुए कई घटनाओं को सूचीबद्ध किया गया है.

हिंदू समर्थक पोर्टल ने बताया- शंकराचार्य राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में क्यों नहीं जाएंगे

एक हिंदुत्व समर्थक पोर्टल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चारों शंकराचार्य राजनीतिकरण, उचित सम्मान न मिलने और समयपूर्व किए जा रहे प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को लेकर नाराज़ हैं. इसके अनुसार, शंकराचार्यों का कहना है कि राम मंदिर के निर्माण को क्रियान्वित करने के बावजूद सरकार ‘राजनीतिक लाभ के लिए हिंदू भावनाओं का शोषण कर रही है’.

अयोध्या: राम, तुम्हारे नाम पर..!

तुलसीदास रामचरितमानस में कहते हैं कि राम के बारे में अब तक जो कुछ भी लिखा-पढ़ा या सुनाया गया है, वह लिखने-पढ़ने-सुनाने वालों की ‘स्वमति अनुसार’ ही है- आधिकारिक या प्रामाणिक नहीं. ऐसी कोई ‘स्वमति’ कुमति में बदल जाए तो उससे किसी भी सभ्य तर्क की कसौटी पर खरी उतरने की अपेक्षा नहीं की जा सकती. 

बिलक़ीस बानो के लिए लड़ने वाली महिलाओं ने कहा- यह किसी अकेले की लड़ाई नहीं है

बिलक़ीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके परिजनों की हत्या के 11 दोषियों की गुजरात सरकार द्वारा सज़ा माफ़ी और रिहाई को रद्द करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पीछे कुछ महिलाएं हैं जो बिलक़ीस को न्याय दिलाने के लिए आगे आईं.

22 जनवरी, 2024 एक तरह से राजनीति के सत की परीक्षा है

चार शंकराचार्यों ने राम मंदिर के आयोजन में शामिल होने से इनकार कर दिया है. उन्होंने ठीक ही कहा है कि यह धार्मिक आयोजन नहीं है, यह भाजपा का राजनीतिक आयोजन है. फिर यह सीधी-सी बात कांग्रेस या दूसरी पार्टियां क्यों नहीं कह सकतीं?

प्रो. जेपीएस ओबेरॉय समाजशास्त्रीय सिद्धांतों को अनुभव और विवेक की कसौटी पर निरंतर आज़माते रहे

स्मृति शेष: जेपीएस ओबेरॉय को जो बात उन्हें अलग करती थी, वो थी समाजशास्त्रीय अध्ययन को सिर्फ भारत की सीमाओं तक महदूद न करने की उनकी अनवरत कोशिश. उन्होंने अपने सहयोगियों और छात्रों को भी भारत के अलावा एशियाई, अफ्रीकी और यूरोपीय समाजों के अध्ययन के लिए प्रेरित किया. इसी क्रम में, ओबेरॉय ने डीयू के समाजशास्त्र विभाग में ‘यूरोपियन स्टडीज़ प्रोग्राम’ की भी शुरुआत की.

जिंदल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर के ख़िलाफ़ एफ़आईआर की 500 से अधिक शिक्षाविदों ने निंदा की

23 सितंबर 2023 को हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष की शिकायत पर पुलिस ने ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी की प्रो. समीना दलवई के ख़िलाफ़ क्लास में एक डेटिंग ऐप पर छात्राओं की प्रोफाइल दिखाकर उनकी ‘गरिमा को ठेस पहुंचाने’ के आरोप में केस दर्ज किया था. शिक्षाविदों ने कहा है कि उन्हें उनकी मुस्लिम पहचान और उनकी राजनीतिक मान्यताओं के लिए निशाना बनाया गया है.

इस भयावह समय में फ़िलिस्तीनी कविता सारी मनुष्यता का शायद सबसे मार्मिक और प्रश्नवाचक रूपक है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: फ़िलिस्तीनी कविता में गवाही, हिस्सेदारी और ज़िम्मेदारी एक साथ है. यह कविता मातृभूमि को भूगोल भर में नहीं, कविता में बचाने की कोशिश और संघर्ष है. दुखद अर्थ में यह कविता मानो फ़िलिस्तीनियों की मातृभूमि ही होती जा रही है- वह ज़मीन जिस पर कब्ज़ा नहीं किया जा सकेगा.

अडानी-हिंडनबर्ग केस में कोर्ट का फ़ैसला न्याय है या कॉरपोरेट-राजनीति के गठजोड़ को मिली दोषमुक्ति?

हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडानी समूह पर लगे आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सेबी को बेदाग़ बताया गया है, जबकि समूह पर लगे आरोपों को लेकर सवाल सेबी के नियामक के बतौर कामकाज पर भी हैं. 

वाक्पटु होने का अर्थ ईमानदार होना नहीं है

सीजेआई का इंटरव्यू याद दिलाता है कि वाक्चातुर्य कला है और कोई उसका माहिर हो सकता है लेकिन क्या वह ईमानदारी से बोल रहा है? चतुर वक्ता पक्ष चुनते हैं या दिए हुए पक्ष के लिए तर्क जुटाते हैं. वे यह कहकर अपने कहे की ज़िम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते कि पक्ष उनका नहीं. हम जानते हैं कि उन्होंने अपना पक्ष चुना है.

क्या सपा का धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में मज़बूती से खड़े रहने का साहस जवाब दे गया है?

जो समाजवादी पार्टी 1993 के दौर से भी पहले से धर्म और राजनीति के घालमेल के पूरी तरह ख़िलाफ़ रही और धर्म की राजनीति के मुखर विरोध का कोई भी मौका छोड़ना गवारा नहीं करती रही है, अब उसके लिए धर्म अनालोच्य हो गया है.

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