उदयनिधि के बयान पर आई प्रतिक्रिया दिखाती है कि ‘सनातनी’ झूठ में ही जीना चाहते हैं

उदयनिधि के बयान पर हुई प्रतिक्रिया से ज़ाहिर होता है कि हिंदू ख़ुद को सनातनी कह लें, पर अपनी आलोचना नहीं सुन सकते. फिर वे उदार कैसे हुए? 

हरियाणा: नूंह में लगाई गई आग का ज़िम्मेदार कौन है?

नूंह के मेव मुसलमान सदियों से क्षेत्र के हिंदुओं के साथ घनिष्ठ संबंध और सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन साझा करते आए हैं, लेकिन 2017 के बाद से शुरू हुईं लिंचिंग की घटनाओं और नफ़रत के चलते होने वाली हिंसा ने इस रिश्ते में दरार डाल दी है.

हबीब तनवीर के रंगमंच में साधारण की महिमा का रंगसंसार प्रगट होता है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हबीब तनवीर का रंगमंच असाधारण रूप से गाता-नाचता-भागता-दौड़ता रंगमंच था. प्रश्नवाचक और नैतिक होते हुए भी वह आनंददायी था. उनके यहां नाटक लीला है और कई बार वह आधुनिकता की गुरुगंभीरता को मुंह चिढ़ाता भी लगता है.

घोसी उपचुनाव: क्या एकजुट विपक्ष से जीतना भाजपा के लिए मुश्किल भरा साबित हो सकता है?

उत्तर प्रदेश के मऊ की घोसी सीट पर हुए उपचुनाव में सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह की जीत में स्थानीय समीकरणों के साथ-साथ भाजपा उम्मीदवार दारा सिंह चौहान की दलबदलू, घोसी का बाहरी और निष्क्रिय जनप्रतिनिधि की छवि ने बड़ी भूमिका निभाई है, फिर भी लोकसभा चुनाव के पहले यह चुनाव विपक्ष के इंडिया गठबंधन बनाम भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए की शक्ति परीक्षण का मैदान बन गया था और इसमें ‘इंडिया’ को सफलता मिली है.

जातिवार जनगणना किसे नागवार है?

जातिवार जनगणना के विरोधियों का आग्रह है कि यह विभाजक पहल है क्योंकि यह जातिगत अस्मिताओं को बढ़ावा देगी, समाज में द्वेष पैदा करेगी. यह तर्क सदियों पुराना है और स्वतंत्रता संग्राम के समय से सत्ता-समीप हलको ने इसका सहारा लिया है. यह कथित ‘उच्च’ जातियों का नज़रिया है, भले ही इस पर प्रगतिशीलता की चादर डाली जाए.

चुनाव भले जब हों, ‘इंडिया’ गठबंधन को कुछ बुनियादी सवालों के लिए तैयार रहना चाहिए

विभिन्न विपक्षी दलों के बीच का सौहार्द्र उत्साहजनक है. पर आम चुनाव जब भी हों, उससे पहले 'इंडिया' गठबंधन को इस मुश्किल इम्तिहान के लिए तैयार रहना होगा.

सार्वजनिक चर्चा में काव्यात्मक गरिमा

समय आ गया है कि सार्वजनिक संवाद का उद्देश्य उत्तम रखा जाए, जो काव्यात्मक कल्पना से प्रेरित हो और साहित्यिक सौंदर्य से ओत-प्रोत हो, जिससे  अंतरवैयक्तिक तथा सामाजिक संवाद दोनों ही शालीन हो सकें.

दादाभाई नौरोजी, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद द्वारा भारत के दोहन की पोल खोली

जन्मदिन विशेष: भारतीयों के लिए स्वराज या स्वशासन की मांग उठाने वाले पहले नेता दादाभाई नौरोजी का व्यक्तित्व व कृतित्व गवाह हैं कि कैसे प्रगतिशील राजनीतिक शक्ति इतिहास के काले अध्यायों में भी एक रोशनी की किरण की तरह होती है.

संविधान, व्यवस्था और स्वप्न दोनों का दस्तावेज़ है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: औपनिवेशिक सत्ता के अंतर्गत हम प्रजा थे: हमें नागरिक हमारे संविधान ने बनाया. नागरिक संविधान के केंद्र में है जहां से उसे अपदस्थ करने का विराट प्रयत्न हो रहा है.

अयोध्या: किसी शहर या समाज को विश्वविद्यालय की ज़्यादा ज़रूरत होती है या हवाई अड्डे की?

2021 में अयोध्या के राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय की एक चौथाई भूमि 'मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे' के निर्माण के लिए निशुल्क ‘समर्पित’ की गई थी. आज हवाई अड्डे का निर्माण पूरा होने का दावा किया जा रहा है, वहीं विश्वविद्यालय सिकुड़कर उससे संबद्ध कई महाविद्यालयों से भी छोटा हो चुका है.

मल्लिकार्जुन खड़गे होने के मायने

भारतीय राजनीति के एक अनुभवी नेता के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे ने 'इंडिया' गठबंधन के बीच की दूरियों को भरने में जो भूमिका निभाई है वह काफी स्पष्ट है. ऐसी और भी कई बातें हैं जो खड़गे के पक्ष में जाती हैं.

काज़ी नज़रुल इस्लाम: ‘हिंदू हैं या मुसलमान, यह सवाल कौन पूछता है?’

पुण्यतिथि विशेष: असहयोग आंदोलन की पृष्ठभूमि में रची कविता में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह के आह्वान के बाद नज़रुल इस्लाम ‘विद्रोही कवि’ कहलाए. उपनिवेशवाद, धार्मिक कट्टरता और फासीवाद के विरोध की अगुआई करने वाली उनकी रचनाओं से ही इंडो-इस्लामिक पुनर्जागरण का आगाज़ हुआ माना जाता है.

लोककाव्य में गांधी

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: आज जब कुछ शक्तियां गांधी को लांछित करने के सुनियोजित अभियान में लगी हैं, तब ‘ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित साहित्य में गांधी’ शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक याद दिलाती है कि गांधी कैसे अपने समय के लोकमानस में पैठे हुए थे.

2023 का भारत 1938 का जर्मनी बन चुका है, यह बार-बार साबित हो रहा है

मुज़फ़्फ़रनगर की अध्यापिका से पूछ सकते हैं कि वे छात्र के लिए ‘मोहम्मडन’ विशेषण क्यों प्रयोग कर रही हैं? वे कह सकती हैं कि उनकी सारी चिंता मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई को लेकर थी. मुमकिन है कि इसका इस्तेमाल इस प्रचार के लिए हो कि मुस्लिम शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं हैं और उन्हें जब तक दंडित न किया जाए, वे नहीं सुधरेंगे.

यूनिवर्सिटी की दहलीज़ पर ‘विश्वगुरु’ के जासूस

क्या बुद्धिजीवी वर्ग को पालतू बनाए रखने की सरकार की कोशिश या विश्वविद्यालयों में इंटेलिजेंस ब्यूरो को भेजने की उनकी हिमाक़त उसकी बढ़ती बदहवासी का सबूत है, या उसे यह एहसास हो गया है कि भारत एक व्यापक जनांदोलन की दहलीज़ पर बैठा है.

1 15 16 17 18 19 39