प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) का अधिकारी बनकर जम्मू कश्मीर के दौरे कर रहे गुजरात के ठग किरण पटेल की ठगी का तो पर्दाफ़ाश हो गया है, लेकिन बड़ी ठगी जम्मू कश्मीर में स्थिति को सामान्य रूप में पेश करने की है, जबकि वास्तविक हालात अलग हैं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: राजनीति अपने आधिपत्य को फैलाने-बचाने के लिए हर दिन कोई नई तरक़ीब इस्तेमाल करती है, वैसे ही साहित्य को नवाचार में संलग्न होना चाहिए. यह कठिन है पर फिर सच्चा और ईमानदार साहित्य लिखना तो हमेशा ही कठिन रहा है. कठिनाई से निपटना साहित्य-धर्म है, उससे भागना नहीं.
राहुल गांधी आरएसएस की राजनीति के ख़िलाफ़ बोलते रहे हैं, इसलिए उन्हें नष्ट या निष्प्रभावी किए बिना आरएसएस का भारत को बहुसंख्यकवादी राज्य में बदलने का सपना पूरा नहीं होगा. यही कारण है कि भाजपा और सरकार उन पर पूरी ताक़त से हमला कर रही है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: उर्दू कविता, अपने हासिल की वजह से भारतीय कविता का बेहद ज़रूरी और मूल्यवान हिस्सा रही है. वह इस तरह हिंदुस्तान का ज़िंदगीनामा है जिसने कभी राजनीति और अध्यात्म के पाखंड को पकड़ने में चूक नहीं की है. उसमें समय के प्रति जागरूकता है, तो उसका अतिक्रमण भी.
डॉ. आंबेडकर ने संविधान के पहले मसौदे को संविधान सभा में पेश करते हुए कहा था कि 'नवजात प्रजातंत्र के लिए संभव है कि वह आवरण प्रजातंत्र का बनाए रखे, परंतु वास्तव में तानाशाही हो जाए.' जब मोदी की चुनावी जीत को लोकतंत्र, उनसे सवाल या मतभेद रखने वालों को लोकतंत्र का दुश्मन बताया जाता है, तब डॉ. आंबेडकर की चेतावनी सही साबित होती लगती है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: ग़ालिब ने अपनी शायरी का आलम घर, आग, तमाशे, ग़मेहस्ती, नाउम्मीदी, तमन्ना, बियाबान और उरियानी से रचा-गढ़ा. दिगंबरता को याने उरियानी को उनके यहां जैसे बरता गया है वह पश्चिमी न्यूडिटी की अवधारणा से बिल्कुल अलग है.
अगर मोदी सरकार झूठ का डंका बजाकर सच को छिपाना चाहती है, तो क्या वह देश का भला कर रही है? अगर सच बोलने पर 'देश पर हमला होने' जैसे आरोप लगें तो इसे देश को आबाद करने का तरीका कहा जाएगा या बर्बाद करने का?
तमिलनाडु में बिहारी मज़दूरों पर हमलों की अफ़वाह को पूरे देश में फैलाने वाले मुख्य रूप से भाजपा के नेता थे. एक नहीं, कई राज्यों के. इसका नुक़सान इसीलिए बहुत गहरा है कि वह देश के ही दो हिस्सों में विभाजन की साज़िश है. भाजपा के इस कृत्य को सबसे घृणित अपराधों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: विनोद जी की आधुनिकता रोज़मर्रा के निम्न-मध्यवर्गीय जीवन में रसी-बसी रही है. उनके यहां जो स्थानीयता आकार पाती है वह मानवीय उपस्थिति, मानवीय विडंबना और मानवीय ऊष्मा की एक त्रयी को चरितार्थ, उत्कट और सघन करती है.
बाबासाहब डाॅ. भीमराव आंबेडकर ने दलितों में तो डाॅ. राममनोहर लोहिया ने पिछड़ी जातियों में सत्ता तथा शासन में हिस्सेदारी की भूख पैदा की और उन्हें संघर्ष करना सिखाया. आज की तारीख़ में इन दोनों के अनुयायियों को एकजुट करके ही हिंदुत्ववादी व मनुवादी ताकतों को निर्णायक शिकस्त दी जा सकती है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: भारत की प्राचीन दृष्टि से इत्तेफ़ाक रखते हुए रज़ा मानते हैं कि मानवीय कर्तव्य ऋत को बनाए रखना है जो वे स्वयं अपनी कला के माध्यम से करने की कोशिश करते हैं. उनकी कला चिंतन, मनन और प्रार्थना है.
क्या किसी मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और सरकार की आलोचना समाज की आलोचना है? क्या भाजपा को यह अहंकार हो गया है कि वही समाज है और जिसे उसने अपना भगवान मान लिया है, वह पूरे समाज का ईश्वर है? उसकी आलोचना, उस पर मज़ाक़ ईशनिंदा है?
भारतीय मिथकीय संदर्भों में अमृत-विष की अवधारणा समुद्र मंथन से जुड़ती है, जहां मोहिनीरूपधारी विष्णु ने चालाकी से सारा अमृत देवताओं को पिला दिया था. आज मोदी सरकार ने आर्थिक संपदा व संसाधनों को प्रभुत्व वर्ग के हाथों में केंद्रित करते हुए मोहिनी की तरह अमृत का पूरा घड़ा ही उनके हाथ में दे दिया है.
बीबीसी-हिंडनबर्ग मामले को भारतीय मीडिया इस तरह पेश कर रहा है कि यह भारत के ट्विन टावरों पर किसी हमले से कम नहीं है. ये ट्विन टावर हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडानी. इन दोनों के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप हल्के नहीं हैं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: 1948 में सैयद हैदर रज़ा का पूरा परिवार पाकिस्तान चला गया था, वे यह कहकर नहीं गए कि भारत उनका वतन है और वे उसे नहीं छोड़ सकते. अब विडंबना यह है कि उनके कला-जीवन की सबसे बड़ी प्रदर्शनी पेरिस के कला संग्रहालय में हो रही है, भारत के किसी कला संस्थान में नहीं.