आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं के बढ़ते मामलों के मद्देनज़र दक्षिण कश्मीर के शोपियां ज़िले के 10 कश्मीरी पंडित परिवार डर के कारण अपने घर छोड़कर जम्मू पहुंचे हैं. उनका आरोप है कि सुरक्षा मुहैया कराने की निरंतर गुहार के बावजूद उनके गांव से बहुत दूर एक पुलिस चौकी बनाई गई है.
जम्मू कश्मीर के बडगाम ज़िले के शालिगंगा नाले के तीन ब्लॉक में खनन की मंज़ूरी जम्मू-कश्मीर पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण द्वारा दी गई थी, जिसके ख़िलाफ़ पर्यावरण कार्यकर्ता राजा मुज़फ़्फ़र भट ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण में अपील दायर की थी.
कश्मीरी फोटो पत्रकार सना इरशाद मट्टू को 18 अक्टूबर को दिल्ली हवाई अड्डे पर वैध वीज़ा और टिकट होने के बावजूद न्यूयॉर्क जाने से रोक दिया गया था. वे पुलित्ज़र पुरस्कार समारोह में शामिल होने जा रही थीं. वे समाचार एजेंसी ‘रॉयटर्स’ की एक टीम का हिस्सा थीं, जिसे भारत में कोविड-19 महामारी की कवरेज के लिए ‘फीचर फोटोग्राफी’ श्रेणी में इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
बीते 15 अक्टूबर को दक्षिण कश्मीर के शोपियां ज़िले में पूरण कृष्ण भट्ट की उनके पैतृक आवास के बाहर आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इस हत्या के विरोध में हुए प्रदर्शनों में लोगों ने कहा कि जम्मू कश्मीर में सुरक्षा हालात गंभीर हैं, लेकिन सरकार इससे बेपरवाह है और केवल एक ही काम कर रही है जो है ‘सामान्य हालात’ का झूठ बोलना.
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने बारामूला सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक के एक प्रबंधक, ग्रामीण विकास विभाग में ग्रामीण स्तर के कार्यकर्ता सैयद इफ़्तिख़ार अंद्राबी, पुलिस की सहायक शाखा के एक आरक्षक तनवीर सलीम डार, जल शक्ति विभाग के एक अर्दली इरशाद अहमद ख़ान और बिजली विकास विभाग में सहायक लाइनमैन एबी मोमिन पीर को बर्ख़ास्त करने के आदेश जारी किए हैं.
कश्मीर ज़ोन पुलिस के मुताबिक, आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडित पूरन कृष्ण भट पर तब गोली चलाई, जब वह शोपियां में बगीचे की तरफ जा रहे थे. उन्हें तुरंत इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया. हत्या के विरोध में कश्मीरी पंडित कर्मचारियों में राजमार्ग को अवरुद्ध करके प्रदर्शन किया.
जम्मू प्रशासन ने मंगलवार को अधिकृत तहसीलदारों को एक वर्ष से अधिक समय से शीतकालीन राजधानी में रहने वाले लोगों को आवासीय प्रमाणपत्र जारी कर ख़ुद को मतदाता के तौर पर रजिस्टर कराने का अधिकार दिया था. भाजपा को छोड़कर सूबे के सभी दलों ने इसका विरोध किया था.
शहरी क्षेत्रों में बीयर और रेडी-टू-ड्रिंक पेय बेचने के लिए विभिन्न डिपार्टमेंटल स्टोर को अधिकृत करने के जम्मू कश्मीर प्रशासन के फैसले का ज़िक्र करते हुए पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि यह मुसलमानों की भावनाएं आहत करने के लिए किया गया है. भाजपा और कांग्रेस ने भी इस क़दम की आलोचना की है.
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि हमारे हज़ारों युवा जेलों में हैं, धार्मिक विद्वानों के यहां छापा डाला जाता है. सरकार दावा करती रहती है कि जम्मू कश्मीर में स्थिति सुधर गई है. अगर स्थिति सुधर गई होती तो इतने अधिक मानवाधिकार उल्लंघन नहीं होते.
बीते वर्ष अक्टूबर में जम्मू कश्मीर और मेघालय के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने आरोप लगाए थे कि उन्हें जम्मू कश्मीर का राज्यपाल रहने के दौरान दो फाइलों को मंज़ूरी देने के बदले 300 करोड़ रुपये की पेशकश की गई थी. इस संबंध में बीते अप्रैल माह में सीबीआई ने दो मामले दर्ज किए थे.
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि एक शादी में पट्टन जाना चाहती थीं, इसलिए उन्हें नज़रबंद किया गया. उन्होंने जोड़ा कि यदि पूर्व मुख्यमंत्री के मौलिक अधिकारों को इतनी आसानी से निलंबित किया जा सकता है, तो आम लोगों की पीड़ा के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता. पुलिस के उनके दावे का खंडन पर उन्होंने कहा कि पुलिस झूठ बोल रही है.
जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर मरम्मत कार्य के चलते हज़ारों की संख्या में सेब से भरे ट्रक कई दिनों से जाम में फंसे हैं. यह सेब देश के विभिन्न हिस्सों में जाने हैं. जहां एक ओर किसानों को अब सेब सड़ने का डर सता रहा है, वहीं प्रशासन का कहना है कि आने वाले दिनों में हालात और ख़राब हो सकते हैं.
बीते 12 मई को बडगाम ज़िले के चादूरा तहसील कार्यालय में कार्यरत कश्मीरी पंडित कर्मचारी राहुल भट्ट की उनके दफ्तर में आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसके बाद घाटी से सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने की मांग को लेकर कर्मचारी लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं.
जनगणना-2011 के मुताबिक भारत में मुस्लिम आबादी 14.2 फीसदी है, जबकि जेल सांख्यिकी-2021 बताती है कि भारतीय जेलों में हिरासत में रखे गए क़ैदियों में मुसलमानों की संख्या उनकी आबादी के अनुपात से दो गुना अधिक है.
कश्मीरी प्रवासी कर्मचारियों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के बाद पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश आज ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहां पर लोगों के पास न तो कोई अधिकार है और न ही उनकी शिकायतों को उठाने के लिए कोई मंच.