मोहम्मद हसन के नाटक ‘ज़ह्हाक’ में सत्ता के उस स्वरूप का खुला विरोध है जिसमें सेना, कलाकार, लेखक, पत्रकार, अदालतें और तमाम लोकतांत्रिक संस्थाएं सरकार की हिमायती हो जाया करती हैं. नाटक का सबसे बड़ा सवाल यही है कि मुल्क की मौजूदा सत्ता में ‘ज़ह्हाक’ कौन है? क्या हमें आज भी जवाब मालूम है?
भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि जब किसी मीडिया संस्थान के अन्य व्यावसायिक हित होते हैं तो वह बाहरी दबावों के प्रति संवेदनशील हो जाता है. अक्सर व्यावसायिक हित स्वतंत्र पत्रकारिता की भावना पर हावी हो जाते हैं. नतीजतन, लोकतंत्र से समझौता होता है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: ग़रीबी, बेरोज़गारी, कुपोषण, शिक्षा का लगातार गिरता स्तर, बढ़ती विषमता, रोज़-ब-रोज़ बढ़ाई जा रही हिंसा-घृणा, असह्य हो रही महंगाई आदि मुद्दों पर बहस ‘सबका साथ सबका विकास’ जैसे जुमले का खोखलापन उजागर कर देगी, इसलिए उन्हें बहस से बाहर रखना सत्ता की सुनियोजित रणनीति है.
देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने एक कार्यक्रम में कहा कि न्याय देने से जुड़े मुद्दों पर ग़लत जानकारी और एजेंडा-संचालित बहसें लोकतंत्र के लिए हानिकारक साबित हो रही हैं. प्रिंट मीडिया अब भी कुछ हद तक जवाबदेह है, जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कोई जवाबदेही नहीं है, यह जो दिखाता है वो हवाहवाई है.
फैक्ट चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को ज़मानत देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि उन्हें लगातार हिरासत में रखने का कोई औचित्य नहीं है. अदालत ने उन्हें बुधवार को ही रिहा करने का आदेश दिया. साथ ही उनके ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश में दर्ज सभी मामले दिल्ली पुलिस को जांच के लिए सौंप दिए और यूपी सरकार द्वारा गठित एसआईटी को भी समाप्त करने का निर्देश दिया.
वीडियो: साल 2018 में किए गए एक ट्वीट को लेकर ‘धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने’ के आरोप में ‘ऑल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर बीते 27 जून को दिल्ली पुलिस ने गिरफ़्तार किया था. इसके अलावा वह उत्तर प्रदेश के विभिन्न ज़िलों में एक साथ छह मुक़दमों का सामना कर रहे हैं. इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान का नज़रिया.
दिल्ली पुलिस द्वारा ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक और पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ दर्ज चार साल पुराने ट्वीट संबंधी मामले में ज़मानत देते हुए दिल्ली की अदालत ने कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज़ ज़रूरी है. किसी भी राजनीतिक दल की आलोचना के लिए आईपीसी की धारा 153ए और 295ए लागू करना उचित नहीं है.
बीते दिनों केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री ने कई प्राइम टाइम टीवी एंकरों और बड़े चैनलों के संपादकों को यह चर्चा करने के लिए बुलाया कि क्या समाचार चैनलों पर सांप्रदायिकता और ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने वाली बहसों को कम किया जा सकता है. मंत्री जी स्पष्ट तौर पर ग़लत जगह इलाज का नुस्ख़ा आज़मा रहे हैं, जबकि असल रोग उनकी नाक के नीचे ही है.
फैक्ट चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में दो और सीतापुर, लखीमपुर खीरी, ग़ाज़ियाबाद और मुज़फ़्फ़रनगर ज़िलों में एक-एक केस दर्ज किए गए हैं. उत्तर प्रदेश पुलिस ने बीते 12 जुलाई को इन मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन भी किया है.
ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर ने कथित तौर पर कट्टर हिंदुत्ववादी नेताओं यति नरसिंहानंद, महंत बजरंग मुनि और आनंद स्वरूप को ‘घृणा फैलाने वाला’ कहा था. इस संबंध में उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के ख़ैराबाद थाने में बीते एक जून को उनके ख़िलाफ़ केस दर्ज किया गया था.
राज्य के ढेंकनाल और केंद्रपाड़ा ज़िले के शिक्षा अधिकारियों ने निर्देश दिया था कि वे स्कूल और कक्षाओं में पत्रकारों को अनधिकृत प्रवेश की अनुमति न दें व ऐसे मामलों की शिकायत पुलिस से करें. बताया गया है कि यह क़दम कुछ समाचार चैनलों द्वारा इन ज़िलों के स्कूलों के छात्रों के गणित में कमज़ोर होने संबंधी ख़बरें प्रसारित किए जाने के बाद उठाया गया है.
फैक्ट चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को उत्तर प्रदेश के सीतापुर में दर्ज एक मामले में सुप्रीम कोर्ट से पांच दिन की अंतरिम ज़मानत मिलने के तुरंत बाद लखीमपुर खीरी पुलिस ने एक अन्य मामले में उसी दिन एक वॉरंट तामील कराया था. बीते साल के एक ट्वीट में ज़ुबैर ने सुदर्शन टीवी के ट्विटर हैंडल से साझा की गई मदीना मस्जिद की छेड़छाड़ की गई तस्वीर पर सवाल उठाया था. इसे लेकर लखीमपुर के सुदर्शन टीवी
सुप्रीम कोर्ट में पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर की याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि बजरंग मुनि 'सम्मानित' धार्मिक नेता हैं, जिनके बहुत अनुयायी हैं. बजरंग मुनि का मुस्लिमों के ख़िलाफ़ हेट स्पीच का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसके चलते वे एक बार गिरफ़्तार भी हुए थे.
यह नया वॉरंट लखीमपुर पुलिस ने सुदर्शन न्यूज़ के एक रिपोर्टर की शिकायत पर मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ साल 2021 में दर्ज एक एफआईआर के सिलसिले में जारी किया है. लखीमपुर पुलिस का यह वॉरंट शुक्रवार को सीतापुर पुलिस द्वारा दर्ज मामले में ज़ुबैर को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम ज़मानत मिलने के बाद सामने आया है.
ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर ने कथित तौर पर कट्टर हिंदुत्ववादी नेताओं यति नरसिंहानंद, महंत बजरंग मुनि और आनंद स्वरूप को ‘घृणा फैलाने वाला’ कहा था. इस संबंध में उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के ख़ैराबाद थाने में बीते एक जून को उनके ख़िलाफ़ केस दर्ज किया गया था. धार्मिक भावनाएं आहत करने के एक अन्य मामले में ज़ुबैर को बीते 27 जून को दिल्ली पुलिस ने गिरफ़्तार किया है. इस मामले के चलते वह फिलहाल हिरासत में ही