'मुख्यधारा' के मीडिया को अयोध्या से जुड़ी ख़बर तब ही महत्वपूर्ण लगती है, जब किसी तरह की सरकारी दर्पोक्ति या सनसनीखेज़ बयान उससे जुड़ा हो. यह पुलिस उत्पीड़नों या अपराधियों के खेलों की ही अनदेखी नहीं कर रहा, बल्कि उसे हज़ारों घरों, दुकानों, पेड़ों आदि की बलि देकर ‘भव्य’ बनाई जा रही अयोध्या की यह ख़बर देना भी गवारा नहीं कि गरीबों का यह तीर्थ अब जल्दी ही उनकी पहुंच से बाहर होने वाला है.
पुण्यतिथि विशेष: पद्मभूषण से सम्मानित साहित्यकार बनारसीदास चतुर्वेदी बारह वर्षों तक सांसद भी रहे थे. हालांकि कम ही लोग जानते हैं कि उनके साहित्यिक जीवन के शुरुआती दिन भारत से फिजी ले जाए गए गिरमिटिया मज़दूरों और दुनिया भर में फैले प्रवासी भारतीयों के संघर्षों के दस्तावेज़ीकरण में गुज़रे.
मुग़ल भारत के अंतिम और सबसे लंबे वक्त तक शासन करने वाले मुस्लिम राजवंश का नाम है, जबकि मुसलमान इस्लाम धर्म के अनुयायियों का. हर मुद्दे को ‘हिंदू-मुस्लिम’ के चश्मे से देखने वालों द्वारा इस तथ्य की उपेक्षा इसलिए की जाती है, क्योंकि इसके बगैर वे मुसलमानों पर निशाने साधने के लिए मुग़लों को उनका असंदिग्ध प्रतिनिधि या विश्वासपात्र शासक साबित नहीं कर सकते.
आज बाबासाहेब की शिक्षा, संदेश व विचारों के बजाय मूर्तियां अहम हो चली हैं. ये मूर्तियां चीख सकतीं तो उन पर तो ज़रूर चीखतीं, जो बाबासाहेब की जयंती व निर्वाण दिवस पर साल में दो दिन उन पर फूलमाला अर्पित कर उनकी विरासत के प्रति अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेते हैं.
बीते दिनों अयोध्या के विश्वस्तरीय विकास के सरकारी दावे को ‘थका और बासी तर्क’ क़रार देते हुए शहर के प्रतिष्ठित आध्यात्मिक विचारक आचार्य मिथिलेशनन्दिनी शरण ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, अयोध्या के भाजपा सांसद, विधायक आदि को टैग करते हुए लिखा कि बात यहां की सड़कें चौड़ी होने और निम्न-मध्य आय वर्ग के विस्थापित होने की आर्थिक-सामाजिक चिंताओं भर की नहीं है.
मुग़लों का इतिहास तो पढ़ाए न जाने के बावजूद इतिहास ही रहेगा- न बदलेगा, न मिटेगा. लेकिन छात्र उससे वाक़िफ़ नहीं हो पाएंगे और उनका इतिहास ज्ञान अधूरा व कच्चा रह जाएगा.
1971 में बांग्लादेश के संघर्ष के वक़्त जब भारत कई हलकों में पाकिस्तान के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप की तोहमतें झेल रहा था, लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि लोकतंत्र किसी देश का आंतरिक मामला नहीं हो सकता और उसका दमन सारे संसार की चिंता का विषय होना चाहिए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिनों विपक्ष को निशाना बनाते हुए कहा कि ‘जब कोर्ट कोई फैसला सुनाता है तो कोर्ट पर सवाल उठाया जाता है... (क्योंकि) कुछ दलों ने मिलकर भ्रष्टाचारी बचाओ अभियान छेड़ा हुआ है.’ हालांकि, यह कहते हुए वे भूल गए कि लोकतंत्र की कोई भी अवधारणा ‘कोर्ट पर सवालों’ की मनाही नहीं करती.
विशेष: भगत सिंह चाहते थे कि स्वतंत्र भारत प्रगतिशील विचारों पर आधारित ऐसा देश बने, जिसमें सबके लिए समता व सामाजिक न्याय सुलभ हो. ऐसा तभी संभव है, जब उसके निवासी ऐसी वर्गचेतना से संपन्न हो जाएं, जो उन्हें आपस में ही लड़ने से रोके. तभी वे समझ सकेंगे कि उनके असली दुश्मन वे पूंजीपति हैं, जो उनके ख़िलाफ़ तमाम हथकंडे अपनाते रहते हैं.
अयोध्या का इतिहास अवध के नवाबों के बग़ैर पूरा नहीं होता. यहां तक कि उनकी बेगमों के बग़ैर भी नहीं. जिस अनूठी तहजीब के कंधों पर इन नवाबों की पालकियां ढोई जाती थीं, उसमें उनकी बेगमें कहीं ज़्यादा आन-बान व शान से मौजूद हैं.
‘अमृतकाल’ में यह याद रखना कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है कि ग़ुलाम भारत ने कैसे-कैसे त्रास झेले और कितना खून या पसीना बहाकर उनसे निजात पाई. इनमें किसानों व मज़दूरों का सबसे बड़ा त्रास बनकर उभरी ‘हरी-बेगारी’ का नाम सबसे ऊपर आता है, जिससे मुक्ति का रास्ता असहयोग आंदोलन से निकला था.
सुनने में बात बहुत अच्छी लगती है कि होली है तो जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो, लेकिन क्या ऐसा करना तब तक संभव है जब तक उन कारणों की पड़ताल न की जाए, जिनके चलते वह बिराना हुआ या कि रह गया.
धर्मवीर भारती की ‘मुनादी’ कविता जब भी याद आती है तो याद आता है कि इस बीच उक्त इतिहास की ऐसी पुनरावृत्ति हो गई है कि इमरजेंसी की मुनादी बिना ही देश में इमरजेंसी से भी विकट हालात पैदा कर दिए गए हैं, मौलिक अधिकारों को छीनने की घोषणा किए बिना उन्हें सरकार की अनुकंपा का मोहताज बना दिया गया है.
बाबासाहब डाॅ. भीमराव आंबेडकर ने दलितों में तो डाॅ. राममनोहर लोहिया ने पिछड़ी जातियों में सत्ता तथा शासन में हिस्सेदारी की भूख पैदा की और उन्हें संघर्ष करना सिखाया. आज की तारीख़ में इन दोनों के अनुयायियों को एकजुट करके ही हिंदुत्ववादी व मनुवादी ताकतों को निर्णायक शिकस्त दी जा सकती है.
भारतीय मिथकीय संदर्भों में अमृत-विष की अवधारणा समुद्र मंथन से जुड़ती है, जहां मोहिनीरूपधारी विष्णु ने चालाकी से सारा अमृत देवताओं को पिला दिया था. आज मोदी सरकार ने आर्थिक संपदा व संसाधनों को प्रभुत्व वर्ग के हाथों में केंद्रित करते हुए मोहिनी की तरह अमृत का पूरा घड़ा ही उनके हाथ में दे दिया है.