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एक कार्यक्रम के दौरान बिहार के शिक्षा मंत्री और राजद नेता चंद्रशेखर ने कहा कि वह रामचरितमानस में शामिल ‘जातिवादी संदर्भों’ का विरोध करना जारी रखेंगे. बीते साल भी उन्होंने कहा था कि मनुस्मृति, रामचरितमानस और एमएस गोलवलकर द्वारा लिखित ‘अ बंच ऑफ थॉट्स’ ‘विभाजनकारी ग्रंथ’ हैं.
कर्नाटक के मांड्या ज़िले का मामला. आरोप है कि ऊंची जाति के एक परिवार ने दलितों के घरों की ओर जाने वाली सड़क को अवरुद्ध कर दिया है. ग्रामीणों ने ज़िला प्रशासन से हस्तक्षेप करने और ऊंची जाति के परिवार द्वारा अतिक्रमण की गई सड़क को खाली कराने का आग्रह किया है.
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा गुजरात विधानसभा में रखी गई एक ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि इसरो ने 2014 और 2017 में अपने अध्ययन में 12 वन्यजीव गलियारों की पहचान की थी और इसे संभावित गलियारों में आवास सुधार की सिफ़ारिश के साथ वन विभाग के साथ साझा किया था, लेकिन उसने अध्ययन के निष्कर्षों का संज्ञान नहीं लिया.
‘ह्वाइल वी वॉच्ड’ डॉक्यूमेंट्री घने होते अंधेरों की कथा सुनाती है कि कैसे इसके तिलस्म में देश का लोकतांत्रिक ढांचा ढहता जा रहा है और मीडिया ने तमाम बुनियादी मुद्दों और ज़रूरी सवालों की पत्रकारिता से मुंह फेर लिया है.
दिल्ली हाईकोर्ट आरटीआई कार्यकर्ता सौरव दास की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें केंद्रीय सूचना आयोग के नवंबर 2020 के आदेश को चुनौती दी गई थी. अदालत ने ऐप से संबंधित फाइल नोटिंग और इसके निर्माण तथा विकास में शामिल लोगों के बीच हुए संचार के अलावा अन्य जानकारियों को हलफ़नामे में शामिल करने का निर्देश दिया है.
हुबली-धारवाड़ नगर निगम ने 31 अगस्त को एक प्रस्ताव पारित कर हुबली के ईदगाह मैदान पर गणेश प्रतिमा स्थापित करके गणेश चतुर्थी मनाने की अनुमति दी थी. अंजुमन-ए-इस्लाम ने इस प्रस्ताव को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. बीते वर्ष भी यहां गणेशोत्सव मनाने का विवाद अदालत में पहुंचा था.
लगभग 20,000 की आबादी और 60 किलोमीटर के दायरे में फैले झारखंड के बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र को पिछले साल ही माओवादियों के चंगुल से मुक्त कराया गया था. गांव, परिवार और व्यक्तिगत स्तर पर किए गए सर्वेक्षणों के आधार पर तैयार की गई एक सरकारी रिपोर्ट में क्षेत्र के निवासियों की दुर्दशा सामने आई है.
जब पत्रकारिता सांप्रदायिकता की ध्वजवाहक बन जाए तब उसका विरोध क्या राजनीतिक के अलावा कुछ और हो सकता है? और जनता के बीच ले जाए बग़ैर उस विरोध का कोई मतलब रह जाता है? इस सवाल का जवाब दिए बिना क्या यह समय बर्बाद करने जैसा नहीं है कि 'इंडिया' गठबंधन का तरीका सही है या नहीं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: वर्ण भेद की सामाजिक व्यवस्था का इतनी सदियों से चला आना इस बात का सबूत है कि उसमें धर्म निस्संदेह और निस्संकोच लिप्त रहा है.