स्वामीनाथन के भीतर एक सर्जनात्मक दृष्टि भी थी. उनका मूल काम आलोचक-दृष्टि रखना नहीं था, जितना सर्जनात्मक दृष्टि रखना और सर्जनात्मक कर्म करना था. गीता कपूर को सर्जनात्मक दृष्टि रखने की कोई दरकार या कोई ज़रूरत नहीं थी.