इक्कीसवीं सदी अल्पवयस्क अवस्था में ही शर्म से झेंपी सदी बन रही है. अब क्या करे कोई कवि? बेशर्म होकर झंडा फहराए संविधान की धज्जियां उड़ाने वालों का? या कसीदे लिखे बच्चों के हत्यारों के लिए? या युद्ध के सौदागरों के लिए विज्ञापन लिखे? 'रचनाकार का समय' में पढ़िए अनुज लुगुन को.