लोकसभा चुनाव 2024
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निर्वाचन आयोग द्वारा प्रकाशित जानकारी की अवधि में कुल 12,155 करोड़ रुपये के बॉन्ड्स खरीदे गए थे. इस राशि का लगभग 7.4% फार्मा और हेल्थकेयर कंपनियों ने खरीदा था. इसमें से यशोदा सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल ने अप्रैल 2022 में सर्वाधिक छह चरणों में 80 बॉन्ड खरीदे, जिसकी क़ीमत 80 करोड़ रुपये है.
निर्वाचन आयोग द्वारा गुरुवार को जारी चुनावी बॉन्ड के आंकड़ों के अनुसार, राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए बॉन्ड की कुल राशि 12,769 करोड़ रुपये से अधिक है, जबकि खरीदे गए बॉन्ड्स कुल 12,155 करोड़ रुपये के थे.
भारतीय स्टेट बैंक द्वारा चुनाव आयोग को चुनावी बॉन्ड के दो सेट उपलब्ध कराए गए हैं, जिनमें बॉन्ड खरीदने वाली कंपनियों और उन्हें भुनाने वाले राजनीतिक दलों की सूचियां हैं, लेकिन किसी भी सूची में बॉन्ड नंबर उपलब्ध न कराए जाने से यह सत्यापित करना संभव नहीं है कि कौन-सी कंपनी या व्यक्ति किस राजनीतिक दल को चंदा दे रहे थे.
जन्मदिन विशेष: मान्यवर कांशीराम के निकट राजसत्ता की चाभी बहुजन हितकारी सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों के बंद ताले खोलने का पूरी तरह अपरिहार्य साधन थी और वे मानते थे कि देश की सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्थाओं में बहुजनों को अपरहैंड तभी मिल सकता है, जब यह चाभी उनके पास रहे. इसके इतर स्थिति में जिसके हाथ में यह चाभी रहेगी, उन्हें उसी की धुरी पर नाचते रहना होगा.
चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित डेटा 2019 और 2024 के बीच राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले कॉरपोरेशन, निजी व्यावसायिक घरानों और व्यक्तियों की सूची तो प्रचंदा करता है, लेकिन यह इस बारे में कोई जानकारी नहीं देता है कि किस राजनीतिक दल ने किस कंपनी द्वारा प्राप्त बॉन्ड को भुनाया.
मानव विकास पर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, चीन और श्रीलंका उच्च मानव विकास श्रेणी में क्रमशः 75वें और 78वें स्थान पर हैं, जबकि मध्यम श्रेणी में रखा गया भारत, भूटान (125) और बांग्लादेश (129) से भी नीचे 134वें स्थान पर है.
वीडियो: लोकसभा चुनावों से ठीक पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियम अधिसूचित होने के बाद से असम में इसका ख़ासा विरोध हो रहा है, वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इसे विभाजनकारी बताते हुए लागू न करने की बात कह चुकी है. इसी विषय पर द वायर की ब्यूरो चीफ संगीता बरुआ पिशारोती से बात कर रही हैं द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी.
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हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद कल्पना सोरेन के सार्वजनिक जीवन में आने के बाद यह आकलन शुरू हो गया है कि लोकसभा चुनाव में वे भाजपा के लिए कितनी बड़ी चुनौती बन सकती हैं. निगाहें इस ओर भी हैं कि इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कल्पना क्या झामुमो की खेवनहार बनेंगी.