हिंदी समाज हर शहर में एक नौजवान भी नहीं तैयार कर पा रहा है जो अपने शहर के रंगमंच से राब्ता रखकर उसका विश्लेषण या परिचय हिंदी के पाठक को उपलब्ध कराता रहे. शिक्षण संस्थान क्या कर रहे हैं? रंग समूह शैक्षणिक परिसर से जुड़ने के लिए क्या कोशिश कर रहे हैं? क्या हिंदी साहित्यकारों का अपने शहर के रंगमंच से कोई वास्ता है?
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मैं इस सिस्टम से नाराज हूं. मुझे इस पर गुस्सा है क्योंकि ये सिर्फ दिखावा करता है कि इसे हमारी फिक्र है पर असलियत इसके उलट है.
अरुणाचल प्रदेश के आठवें मुख्यमंत्री कालिखो पुल की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है.
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