साल 1920 में अवध किसान सभा ने ब्रिटिश सरकार के किसान विरोधी क़ानूनों व नीतियों के ख़िलाफ़ संघर्ष की रणभेरी बजाने के लिए सम्मेलन हेतु अयोध्या के सरयू तट को चुना था. दमनकारी सरकार की निगाहों से बचते हुए सूबे के कोई एक लाख किसान वहां पहुंचे थे, जिनके लिए अयोध्या के संतों ने अपने मठ-मंदिर खोल दिए थे.
19 दिसंबर, 1927 को ब्रिटिश सरकार ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के तीन क्रांतिकारियों- रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, अशफ़ाक़ उल्ला खां और रोशन सिंह को क्रमशः गोरखपुर, फ़ैज़ाबाद और इलाहाबाद की जेलों में फांसी दी थी.
पुण्यतिथि विशेष: अदम तब भी नहीं हकलाए, जब वंचितों के सारे हक़ों को मारकर बैठे सत्ताधीशों व हाक़िमों ने अपनी भृकुटियां टेढ़ी कर लीं और सबक सिखाने पर आमादा हो गए. अफ़सोसजनक है कि आज सत्ता ने सवालों की राह ऐसी बना दी है कि अनेक सवालिया निगाहें उसकी ओर उठने की हिम्मत तक नहीं कर पा रहीं.
अपने स्वर्णकाल में भी ‘असुरक्षा’ की शिकार हिंदुत्ववादी जमातों ने डॉ. मनमोहन सिंह को छोड़कर हर कांग्रेसी प्रधानमंत्री को हिंदुत्ववादी क़रार देने या खींच-खांचकर हिंदुत्व के पाले में लाने के प्रयास किया है. इंदिरा गांधी भी इससे अछूती नहीं रही हैं.
विशेष: दीपावली को बुराई पर अच्छाई, अंधेरे पर प्रकाश की जीत का पर्व माना जाता है. झूठ पर सच की जीत का भी. पर ऐसा क्यों है कि हर दीपावली पर बुराइयां, अंधेरे और झूठ घटने के बजाय पिछली बार के मुक़ाबले बढ़े दिखते हैं.
जन्मदिन विशेष: स्वतंत्रता सेनानियों की ‘गांधीवादी-समाजवादी’ जमात के सदस्य और दर्शन व इतिहास के लोकप्रिय व्याख्याता रहे जेबी कृपलानी को उनकी ‘चिर असहमति’ के लिए भी जाना जाता है. इसका नतीजा यह भी रहा कि वे बार-बार अपनी भूमिकाएं पुनर्निर्धारित करते रहे.
लगभग चालीस साल पहले अयोध्या में रहने वाले 'गुमनामी बाबा' को सुभाष चंद्र बोस बताए जाने की कहानी एक स्थानीय अख़बार की सनसनीखेज़ सुर्ख़ी से शुरू हुई थी. इसके बाद तो नेताजी के प्रति उमड़ी भावनाओं के अतिरेक ने लोगों को बहाकर वहां ले जा छोड़ा, जहां तर्कों की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती.
पुण्यतिथि विशेष: रामधारी सिंह 'दिनकर' की निगाह से लोहिया को देखना एक मित्र की निगाह से देखना तो है ही, राष्ट्रकवि की निगाह से देखना भी है, सत्ता में बैठी उस पार्टी के नेता की निगाह से देखना भी, जिसे वे उसके सबसे बड़े नेता समेत उखाड़ फेंकना चाहते थे.
जन्मदिन विशेष: आज़ादी की लड़ाई के समय लखनऊ में अवधी के बडे़ कवि बलभद्र प्रसाद दीक्षित ‘पढ़ीस’ जितने कवि थे, उससे ज़्यादा एक्टिविस्ट. जाति व वर्ण व्यवस्थाओं और ग़ैर-बराबरी के ख़िलाफ़ होकर ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़कर उन्होंने श्रमजीवी बनने की राह चुनी थी.
जन्मदिन विशेष: भारतीयों के लिए स्वराज या स्वशासन की मांग उठाने वाले पहले नेता दादाभाई नौरोजी का व्यक्तित्व व कृतित्व गवाह हैं कि कैसे प्रगतिशील राजनीतिक शक्ति इतिहास के काले अध्यायों में भी एक रोशनी की किरण की तरह होती है.
हमारी हालत अब भी उस पक्षी जैसी है, जो लंबी क़ैद के बाद पिंजरे में से आज़ाद तो हो गया हो, पर उसे नहीं पता कि इस आज़ादी का करना क्या है. उसके पास पंख हैं पर ये सिर्फ उस सीमा में ही रहना चाहता है जो उसके लिए निर्धारित की गई है.
1856 में ईस्ट इंडिया कंपनी के अवध के नवाब वाजिद अली शाह को जबरन अपदस्थ कर निर्वासित किए जाने के बाद उनकी मां एक शिष्टमंडल के साथ ब्रिटेन की क्वीन विक्टोरिया से मिलने लंदन गई थीं. लेकिन विक्टोरिया ने मदद तो दूर, दस महीनों तक उनसे भेंट करना गवारा नहीं किया.
मुग़ल भारत के अंतिम और सबसे लंबे वक्त तक शासन करने वाले मुस्लिम राजवंश का नाम है, जबकि मुसलमान इस्लाम धर्म के अनुयायियों का. हर मुद्दे को ‘हिंदू-मुस्लिम’ के चश्मे से देखने वालों द्वारा इस तथ्य की उपेक्षा इसलिए की जाती है, क्योंकि इसके बगैर वे मुसलमानों पर निशाने साधने के लिए मुग़लों को उनका असंदिग्ध प्रतिनिधि या विश्वासपात्र शासक साबित नहीं कर सकते.
गांधीजी की हत्या में आरएसएस का हाथ होने के मामले को अदालती कार्यवाही पर छोड़ना उचित है. लेकिन इतिहास लेखन उनकी हत्या के पीछे छुपे विचार को पकड़ने में दिलचस्पी रखता है.
नेहरू स्वतंत्रता आंदोलन से निकले ऐसे नायक हैं, जिनकी विचारधारा और पक्षधरता में कोई विरोधाभास नहीं है.