यूपी के बांदा ज़िले की शहजादी खान दिसंबर 2021 में क़ानूनी वीज़ा पर अबू धाबी गईं थीं. फरवरी 2023 में चार महीने के बच्चे की कथित हत्या के आरोप में उन्हें गिरफ़्तार किया गया. उनके पिता की याचिका की सुनवाई में विदेश मंत्रालय ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि शहजादी को 15 फरवरी को फांसी दे दी गई.
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छत्तीसगढ़ शासन ने रायपुर ज़िले के सहायक खाद्य अधिकारी संजय दुबे को निलंबित कर दिया गया है. इससे पहले रायपुर में दो दिवसीय ‘धर्म संसद’ कार्यक्रम में महात्मा गांधी पर हिंदू धार्मिक नेता कालीचरण महाराज ने कथित अपमानजनक टिप्पणी की थी. रायपुर में केस दर्ज होने के बाद महाराष्ट्र पुलिस ने कालीचरण के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है.
उत्तराखंड के हरिद्वार में 17-19 दिसंबर के बीच आयोजित ‘धर्म संसद’ में हिंदुत्ववादी नेताओं और कट्टरपंथियों द्वारा मुसलमानों के ख़िलाफ़ कथित तौर पर नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने के सिलसिले में 23 दिसंबर को दर्ज प्राथमिकी में जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी को नामजद किया गया था. अब उसमें स्वामी धरमदास और साध्वी अन्नपूर्णा के नाम जोड़े गए हैं.
डेसमंड टूटू को रंगभेद के कट्टर विरोधी और अश्वेत लोगों के दमन वाले दक्षिण अफ्रीका के क्रूर शासन के ख़ात्मे के लिए अहिंसक रूप से अथक प्रयास करने के लिए जाना जाता है. साल 1994 में दक्षिण अफ्रीका से रंगभेद के औपचारिक अंत के बाद भी टूटू ने मानवाधिकारों के लिए अपनी लड़ाई को नहीं रोका था. वह एचआईवी/एड्स, नस्लवाद, होमोफोबिया और ट्रांसफोबिया सहित तमाम मुद्दों पर आवाज़ उठाते रहते थे.
सिख धार्मिक प्रतीकों के कथित अपमान को लेकर पंजाब में बीते दिनों दो लोगों की भीड़ द्वारा हत्या कर दी गई. जनभावनाएं लिंचिंग की इन घटनाओं के समर्थन में खड़ी नज़र आती हैं और मुख्यधारा के राजनीतिक दल व सिख स्कॉलर्स उन भावनाओं को आहत करना नहीं चाहते.
भारत में पिछले 24 घंटे में 6,358 और लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जाने के बाद संक्रमण के कुल मामलों की संख्या बढ़कर 3,47,99,691 हो गई है. इस दौरान इस दौरान 293 और मरीज़ों की मौत होने से जान गंवाने वालों का आंकड़ा 4,80,290 हो गया है. विश्व में संक्रमण के 28.14 करोड़ से अधिक मामले सामने आए हैं और इस महामारी के कारण 54.06 लाख से ज़्यादा लोग दम तोड़ चुके हैं.
हरिद्वार में हुई तथाकथित धर्म संसद में कही गई अधिकांश बातें भारतीय क़ानूनों की धारा के तहत गंभीर अपराध की श्रेणी में आती हैं, लेकिन अब तक इसे लेकर की गई उत्तराखंड पुलिस की कार्रवाई दिखाती है कि वह क़ानून या संविधान नहीं, बल्कि सत्तारूढ़ पार्टी के लिए काम कर रही है.
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