महाकुंभ का राजनीतिकरण अपनी सीमाएं न लांघ रहा होता, तो न इस मेले को अतिशय महत्वपूर्ण बताने के लिए आने-नहाने वालों की संख्या तर्कातीत स्तर तक बढ़ाकर कई-कई करोड़ बताने की ज़रूरत पड़ती, न ही शाही स्नान का नाम बदलकर अमृत स्नान बताकर अपनी हीनता ग्रंथि को तुष्ट करने की.
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दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में शामिल होने वाले विभिन्न भारतीय भाषाओं के प्रकाशकों की संख्या में लगातार कमी दर्ज की जा रही है.
मैं इस सिस्टम से नाराज हूं. मुझे इस पर गुस्सा है क्योंकि ये सिर्फ दिखावा करता है कि इसे हमारी फिक्र है पर असलियत इसके उलट है.
अरुणाचल प्रदेश के आठवें मुख्यमंत्री कालिखो पुल की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है.
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