एल्गार परिषद मामले के आरोपियों- वरवरा राव, अरुण फरेरा और वर्नोन गॉन्जाल्विस द्वारा दायर याचिका में बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश पर पुनर्विचार का अनुरोध किया गया था, जिसमें उन्हें डिफॉल्ट ज़मानत देने से इनकार किया गया था.
एल्गार परिषद मामले में 83 वर्षीय वरवरा राव पिछले साल फरवरी से अस्थायी चिकित्सा ज़मानत पर जेल से बाहर हैं. उन्होंने ज़मानत पर बाहर रहते हुए अपने गृह नगर हैदराबाद में रहने और सुनवाई पूरी होने तक स्वास्थ्य आधार पर स्थायी ज़मानत का अनुरोध किया था. हालांकि अदालत ने इससे इनकार कर दिया.
महाराष्ट्र की तलोजा जेल में एल्गार परिषद मामले में गिरफ़्तार मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को जेल अधिकारियों ने प्रसिद्ध अंग्रेज़ी लेखक पीजी वुडहाउस की एक किताब देने से इनकार कर दिया. अधिकारियों ने तर्क दिया था कि इससे ‘सुरक्षा को ख़तरा’ हो सकता था.
एल्गार परिषद मामले में आरोपी 83 वर्षीय कवि वरवरा राव को फरवरी में मेडिकल आधार पर मिली अंतरिम ज़मानत के बाद पांच सितंबर को आत्मसमर्पण कर न्यायिक हिरासत में लौटना था, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा इस अवधि को बढ़ाया गया. राव के वकील ने कोर्ट को बताया कि इस दौरान राव बीमार थे और उन्हें मुंबई के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
एल्गार परिषद मामले में आरोपी 82 वर्षीय कवि वरवरा राव को फरवरी में मेडिकल आधार पर मिली अंतरिम ज़मानत के बाद पांच सितंबर को आत्मसमर्पण कर न्यायिक हिरासत में लौटना था, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा इस अवधि का विस्तार करते हुए उन्हें राहत दी गई है. कोर्ट ने राव से चिकित्सा ज़मानत पर बाहर रहने के दौरान अपने गृहनगर जाने की अनुमति के लिए अलग से याचिका दायर करने को भी कहा है.
मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार गौतम नवलखा की पार्टनर सहबा हुसैन ने बताया कि उन्हें बीते 12 अक्टूबर को नवी मुंबई स्थित तलोजा जेल के अंडा सेल में शिफ्ट किया गया है और उनका स्वास्थ्य काफी बिगड़ गया है. एल्गार परिषद-भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ़्तार कार्यकर्ताओं, वकीलों और विद्वानों में नवलखा सबसे उम्रदराज़ हैं.
एल्गार परिषद मामले में आरोपी 82 वर्षीय कवि वरवरा राव को इस साल फरवरी में मेडिकल आधार पर अंतरिम ज़मानत मिली थी. उन्हें पांच सितंबर को आत्मसमर्पण कर न्यायिक हिरासत में लौटना था, लेकिन अदालत द्वारा ज़मानत अवधि का विस्तार करते हुए उन्हें राहत दी गई है.
एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में आरोपी कवि वरवरा राव को पांच सितंबर को तालोजा जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करना है. वह इस साल फरवरी में अदालत द्वारा दी गयी अंतरिम चिकित्सा ज़मानत पर हैं. उन्होंने ख़राब स्वास्थ्य और उच्च ख़र्चों का हवाला देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट से अपनी ज़मानत अवधि बढ़ाने और हैदराबाद में अपने आवास में स्थानांतरित करने की अनुमति मांगी है.
एल्गार परिषद मामले में आरोपी दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हेनी बाबू को आंख के संक्रमण का उपचार पूरा होने के बाद मुंबई के एक निजी अस्पताल से वापस तलोजा जेल भेजा जाएगा. अदालत ने निर्देश दिया कि उनके जेल में आने के बाद जब भी आवश्यक हो, उन्हें मेडिकल देखभाल दी जाए.
फादर स्टेन स्वामी की हिरासत, ख़ारिज होती ज़मानत, बुनियादी ज़रूरतों के लिए अदालत में अर्ज़ियां लगाना और अंत में अपनों से दूर एक अनजान शहर में उनका गुज़र जाना यह एहसास दिलाता है कि उनके ख़िलाफ़ कोई आरोप तय किए बिना और उन पर कोई मुक़दमा चलाए बगैर उन्हें सज़ा-ए-मौत मुक़र्रर कर दी गई.
एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में यूएपीए के तहत पिछले साल गिरफ़्तार किए गए आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की बीते पांच जुलाई को मुंबई के एक अस्पताल में मौत हो गई थी. संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत मैरी लॉलर ने कहा कि आरोपी के तौर पर हिरासत में उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया गया.
वीडियो: भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में पिछले साल आठ अक्टूबर को गिरफ़्तार किए गए 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का निधन पांच जुलाई को मेडिकल आधार पर ज़मानत का इंतज़ार करते हुए अस्पताल में हो गया. उनके प्रियजनों ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी मौत के लिए पूरी तरह से लापरवाह जेल, उदासीन अदालतें और दुर्भावनापूर्ण जांच एजेंसियां ज़िम्मेदार हैं.
एल्गार परिषद- भीमा कोरेगांव मामले के 10 आरोपियों की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि एनआईए और तलोजा जेल के पूर्व अधीक्षक ने स्टेन स्वामी को प्रताड़ित करने का एक भी मौका नहीं छोड़ा चाहे वह जेल में भयावह बर्ताव हो, अस्पताल से उन्हें जेल में लाने की जल्दबाज़ी हो या पानी पीने के लिए सिपर जैसी छोटी सी चीज़ों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो, जिसकी स्वामी को अपने स्वास्थ्य के कारण ज़रूरत होती थी.
संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ की मानवाधिकार संस्था द्वारा आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की मौत पर भारत सरकार की आलोचना करने के बाद विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि देश मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है. मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए उन्हें गिरफ़्तार करने के बाद हिरासत में लिया था.
भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में पिछले साल आठ अक्टूबर को गिरफ़्तार किए गए 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का निधन बीते सोमवार को मेडिकल आधार पर ज़मानत का इंतज़ार करते हुए अस्पताल में हो गया. आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी के प्रियजनों ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी मौत के लिए पूरी तरह से लापरवाह जेल, उदासीन अदालतें और दुर्भावनापूर्ण जांच एजेंसियां ज़िम्मेदार हैं.