मद्रास हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में चेन्नई के 28 वर्षीय व्यक्ति को दोषमुक्त करते हुए कहा था कि निजी तौर पर बाल पॉर्नोग्राफी देखना पॉक्सो एक्ट के दायरे में नहीं आता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को रद्द करते हुए गंभीर ग़लती बताया है.