दिल्ली दंगों की पांचवीं बरसी पर कारवां ए मोहब्बत द्वारा जारी रिपोर्ट बताती है कि पीड़ितों को मुआवज़ा देने के लिए आयोग बनाया गया था लेकिन इसके मानक अज्ञात थे. रिपोर्ट के मुताबिक, यह भारत के इतिहास में सांप्रदायिक हिंसा के बाद मुआवज़े के भुगतान की संभवतः सबसे खराब स्थिति है.
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मथुरा की एक अदालत में लोगों के एक समूह की ओर से दाखिल याचिका में कृष्ण जन्मस्थान परिसर में स्थित 17वीं सदी की शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई थी. अदालत ने बुधवार को इसे ख़ारिज कर दिया.
बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले की शुरुआत इस बारे में दर्ज दो एफआईआर 197 और 198 से हुई थी. पहली एफआईआर विध्वंस के ठीक बाद अयोध्या थाने में लाखों अज्ञात कारसेवकों के ख़िलाफ़ दर्ज हुई थी और दूसरी जिसमें भाजपा, संघ और बाकी संगठनों के नेता नामजद थे.
बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भाजपा नेताओं समेत 32 आरोपियों को बरी किए जाने पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि विशेष सीबीआई अदालत का यह फैसला ग़लत है. अदालत ने सबूतों को नज़रअंदाज़ कर यह निर्णय दिया है. वहीं राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले के मुद्दई रहे इक़बाल अंसारी ने इस फैसले का स्वागत किया है.
गुजरात सरकार द्वारा 17 अप्रैल 2020 को जारी उस अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसके तहत मज़दूरों के कई अधिकारों को रद्द कर दिया गया था. कोर्ट ने कहा कि महामारी का हवाला देकर मज़दूरों के सम्मान और उनके अधिकारों के लिए बने क़ानूनों को ख़त्म नहीं किया जा सकता.
बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भाजपा नेताओं समेत 32 लोगों को बरी करते हुए विशेष सीबीआई अदालत ने कहा था कि कुछ अराजक कारसेवकों के समूह द्वारा मस्जिद गिराई गई थी और ऐसे लोगों को रामभक्त नहीं कहा जा सकता है. मस्जिद गिराना पूर्व नियोजित साज़िश नहीं थी.
वीडियो: यूपी के हाथरस की 19 वर्षीय गैंगरेप पीड़िता के बारे में देश के न्यूज़ चैनलों ने ख़बर दिखाना तब शुरू किया, जब दिल्ली के अस्पताल में उनकी मौत के कई घंटे बाद कार्यकर्ता सड़कों पर आ गए. इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार रवि अरोड़ा और सामाजिक कार्यकर्ता ऋतु सिंह से उर्मिलेश की बातचीत.
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