स्मृति शेष: दस सालों तक क़ैद में अलग-थलग और कठोरतम जीवन परिस्थितियों के बीच भी जीएन साईबाबा की जिजीविषा और हौसला अटूट रहा. शायद इन्हीं जीवन मूल्यों के सहारे उन्होंने सदियों से उत्पीड़ित समुदायों के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए अपनी असंदिग्ध प्रतिबद्धता को कायम रखा होगा.