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6 अप्रैल को श्रीनगर के नौहट्टा में स्थित जामिया मस्जिद का प्रबंधन संभालने वाली अंजुमन औकाफ जामिया मस्जिद ने बताया कि जुमे के रोज़ अधिकारियों ने मस्जिद के गेट बंद कर दिए और कहा कि शब-ए-क़द्र पर मस्जिद में तरावीह या शब खानी की अनुमति नहीं दी जाएगी. बताया गया है कि संभव है कि इस हफ्ते ईद की नमाज़ को भी इजाज़त नहीं मिलेगी.
मामला इंदौर का है, जहां 20 मार्च को चोइथराम नेत्रालय में सरकारी ख़र्च पर 79 मरीजों की मोतियाबिंद सर्जरी की गई थी. इसके अगले दिन 50 से 85 वर्ष की आयु के आठ मरीज़ों को आंखों में सूजन, जलन और आंखों की रोशनी कम होने की समस्या होने लगी.
वीडियो: भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों की जांच के दायरे में रहे ग़ैर-भाजपा या विपक्षी दलों के नेताओं के भाजपा में पहुंचने पर वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान का नज़रिया.
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को कथित भूमि हड़पने से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ़्तार किया गया था. फिलहाल वे जेल में हैं.
भारत में संचालित डिजिटल समाचार संगठनों के लिए नए नियमों के तहत 26 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा तय की गई है, जिसके चलते बीबीसी ने भारत में अपना न्यूज़रूम प्रकाशन लाइसेंस 'कलेक्टिव न्यूज़रूम' नामक निजी कंपनी को सौंप दिया, जिसे इसके ही चार पूर्व कर्मचारियों ने स्थापित किया है.
विदेशी फंडिंग प्राप्त करने के आरोप में बीते छह माह से जेल में बंद न्यूज़क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ के समर्थन में एकजुटता व्यक्त करने के लिए राजधानी दिल्ली में आयोजित एक कार्यकर्म में विपक्षी नेताओं, पत्रकारों और नागरिक समाज के लोगों ने मोदी सरकार पर असहमति की आवाज़ कुचलने और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों के हनन का आरोप लगाया.
कनाडाई खुफिया एजेंसी सीएसआईएस ने विदेशी हस्तक्षेप की जांच कर रहे एक संघीय आयोग को सौंपे दस्तावेज में कहा है कि कनाडा में 2019 और 2021 के संघीय चुनावों में भारत सरकार का हस्तक्षेप करने का इरादा था और संभवतः इस उद्देश्य से गुप्त गतिविधियां संचालित की गईं.
जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और लद्दाख के नागरिक रविवार को लेह से चांगथंग तक के लिए एक मार्च निकालने वाले थे, जिसे 'पश्मीना मार्च' नाम दिया गया था. हालांकि, इसे मोदी सरकार द्वारा धारा 144 लगाने समेत अन्य कड़े कदम उठाए जाने के चलते रद्द कर दिया गया.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंसा को सार्वजनिक अभिव्यक्ति का लगभग क़ानूनी माध्यम स्वीकार किया जाने लगा है. समाज उसे और उसके फैलाव को लेकर, उसके साथ जुड़े झूठों और घृणा को लेकर विचलित नहीं है. पढ़े-लिखे लोग उसे अवसर मिलते ही, उचित ठहराने लगे हैं.